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सूत्र
अंजू
१७०
संति
४६
आचारांग मजैवि. संस्करण
आगमोदय संस्करण संकुचए
२४३
सङ्कुचए सिंगाए
५२ सिङ्गाए
अञ्जू (शीलांक-वृत्ति) भुजे
३१३ भुजे
सन्ति पलालपुंजेसु
२७८ पलालपुजेसु (शीलांकवृत्ति) भवंति
५३ भवन्ति आरंभा
आरम्भा लिपिकारों ने अपनी लेखन-सुविधा के लिए संयुक्त व्यंजन में नासिक्य व्यंजन की जगह पर अनुस्वार लिखने की प्रथा चलायी थी और बाद में वह नियमित-सी हो गयी।
(२) अलग-अलग संस्करणों में अलग-अलग शब्द-पाठ मजैवि. सूत्र आगमोदय जै.वि.भारती ब्यावर शूबिंग महोदय
मधुकर मुनि णो १ णो
नो णो
नो सण्णा १ सण्णा
सण्णा सण्णा
सन्ना भवति १,१४ भवइ (ति) भवइ (ति) भवति भवइ आगतो १ आगमो आगओ आगतो आगओ अधेदिसातो १ अहोदिसाओ अहे (दिसाओ) अहेदिसातो अहेदिसामओ अन्नतरीतो १ अण्णयरीओ अण्णयरीओ अन्नतरीतो अन्नयरीओ णातं १,१४ णायं (तं) णातं
णातं
नायं भवति १ भवति भवति
भवति भवइ उववाइए १ उववाइए ओववाइए उववाइए उववाइए णस्थि १ नत्थि णत्थि
णत्थि
नत्थि चुते १ चुए चुओ चुओ चुओ सहसम्मुइयाए सह/संमइयाए सहसम्मुइयाए सहसम्मुइयाए सहसम्मुइयाए अण्णेसिं २ अण्णेसि अण्णेसिं अण्णेसि अन्नेसि अन्नतरीओ २ अण्णयरीओ अण्णयरीओ अन्नतरीओ अन्नयरीओ लोगावादी ३ लोयावादी लोगावाई लोगावादी लोगावाई समणुण्णे ४ समणुन्ने समणुण्णे समणुण्णे समणुन्ने सहेति ६ साहेति सहेति सहेति . सहेइ पडिसंवेदयति ६ पडिसंवेदेइ पडिसंवेदेइ पडिसंवेदयति पडिसंवेएइ
तुलसी प्रज्ञा
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