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________________ ૪૬ तुलसी की जीवन विज्ञान की शिक्षा भी इस दिशा में उपयोगी सिद्ध होगी । ६. संचार के साधनों विशेषकर दूरदर्शन का सदुपयोग भी इस दिशा में सहायक होगा । ७. व्यवहार में वैज्ञानिक दृष्टि हो और विज्ञान का प्रयोग मानव हित में किया जाए । इसी प्रकार अध्यात्म को शिखर से उतर कर धरती के समीप होना चाहिये । यह तभी संभव है जब इसका समाजीकरण होगा । ८. चूंकि प्राचीन भारतीय वाङमय में अध्यात्म तथा विज्ञान की विभाजन रेखा नहीं है अतः हमें प्राचीन वाङ् मय का इस दृष्टि से अध्ययन करना चाहिये कि वहां किस रूप में विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय किया गया है । ९. हमें व्यक्तिगत, सांप्रदायिक तथा पांथिक वृत्ति से ऊपर उठकर विश्व एवं मानव धर्म के भाव को सुगठित करना चाहिये । १०. जीवन के हर क्षेत्र में तटस्थ और निष्पक्ष वृत्ति का अभ्यास होना चाहिए तथा मानव को मन से ऊपर उठने के लिए अक्षोभ वृत्ति, समत्व दृष्टि तथा माध्यस्थ भाव का विकास करना चाहिये ११. शिक्षा पद्धति में सूचना, संग्रह और स्मृति विकास से अधिक बुद्धि, विवेक और समग्रात्मक दृष्टि के विकास पर बल दिया जाए । १२. जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं में भारतीय शिक्षा, अहिंसा, ध्यान के अध्यापन, भौतिक और पर्यावरण विज्ञानों का भी अध्ययन, अध्यापन और शोध होना चाहिये । १३. अध्यात्म को जीवनोन्मुख और समाजोन्मुख बनाने के लिए जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं के द्वारा समाज सेवा एवं सामाजिक कार्य के अध्ययन की ओर विशेष ध्यान देना होगा । १४. आचार्यश्री तुलसी एवं आधुनिक भारत के अन्य संतों के नेतृत्व में अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का नया आंदोलन प्रारम्भ हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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