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________________ तकनीक के कारण जो परिवर्तन हुए उन्हें एक शब्द में 'अधिक वेगवती गति' कहा जा सकता है। जितनी दूरी हम कभी छ: महीने में पार करते थे उसे पार करने में छः घंटे भी नहीं लगते। हाथ से लिखकर जिस ग्रंथ की प्रतिलिपि छः महीने में होती थी उस ग्रन्थ की छाया-प्रति छः घण्टे में हो जाती है । जो दाल देगची में ४५ मिनट में बनती थी वह प्रेशर कुकर में ३ मिनट में बन जाती है। कहीं-कही यह गति कल्पनातीत मात्रा में बढ़ी है। जो संदेश संदेशवाहक द्वारा वर्ष भर में पहुंचता था वह संदेश दूरभाष अथवा फेक्स द्वारा तत्काल पहुंच जाता है। गति की इस त्वरा में कम्प्यूटर ने नया आयाम खोल दिया है, क्योंकि वे बहुत से ऐसे कार्य जो अब तक मनुष्य की बुद्धि द्वारा ही होने संभव थे, यन्त्र से होने लगे हैं। इसलिए कम्प्यूटर २१ वीं शताब्दी का पर्यायवाची बन गया है। विज्ञान के इन दोनों पक्षों पर ही आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करें तो पता चलेगा कि विज्ञान के इन दोनों क्षेत्रों में अध्यात्म एक नया मोड़ दे सकता है। पहले सिद्धांत के क्षेत्र को लें। कारण-कार्य पर टिके हुए तर्कवाद की अपनी सीमा है। प्रत्येक घटना का कारण होता है किन्तु इसकी दो सीमाएं हैं (१) प्रत्येक कारण प्रत्यक्ष नहीं होता, कुछ कारण परोक्ष भो होते हैं, (२) स्वभाव का कोई कारण नहीं होता। परोक्ष कारण को खोज से ही कर्म सिद्धांत फलित होता है, यदि मेरे जीवन के सुख दुःखों का कारण इस जन्म में दिखाई नहीं देता तो वह पिछले या पिछलों से भी पिछले जन्म में रहा होगा। यदि हम पूर्वजन्म को न मानें तो ऐसे सुख दुःखों को अकारण मानना होगा। किन्तु अध्यात्मवादी किसी कार्य को अकारण मानने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में वह ऐसे कारण की सत्ता का अनुमान करने के लिए बाध्य है जो कारण परोक्ष है। इस प्रकार के परोक्ष कारणों को मानने के लिए आज वैज्ञानिक भी बाध्य है। हाइन्जन्बर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत यह मानकर चलता है कि परमाणु से भी अधिक सूक्ष्म स्तर पर यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि पदार्थ का व्यवहार कैसा होगा। ऐसी स्थिति में या तो यह माना जाए कि पदार्थ कारण-कार्य-सम्बन्ध से बंधा हुआ नहीं है या यह स्वीकार किया जाए कि प्रकृति में कुछ ऐसे भी कारण होते हैं जो हमें ज्ञात नहीं होते क्योंकि वे परोक्ष हैं । अध्यात्म का कहना है कि बिना कारण के कुछ भी नहीं हो सकता । अतः ऐसी स्थिति में कारणों को परोक्ष ही मानना चाहिए। . जब हम यह कहते हैं कि बिना कारण के कुछ नहीं हो सकता है तो उसका एक महत्त्वपूर्ण अपवाद भी है-स्वभाव का कोई कारण नहीं होता"स्वभावोऽतकं गोचरः।" पानी ठण्डा क्यों है, आग गर्म क्यों है-इसका कोई खण्ड १८, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524575
Book TitleTulsi Prajna 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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