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समस्याओं का समाधान स्याद्वाद में खोजा जा सकता है। स्याद्वाद किसी भी समस्या का समाधान एकान्तिक नहीं अपितु सापेक्षवाद के आधार पर प्रस्तुत करता है। जैसे पुत्र के मन में आया, मुझे अपने पिता से अलग रहना है और उसने पिता से कहापिताजी ! इतने दिनों तक मैं आपके साथ भोजन करता रहा, अब मैं आपके साथ भोजन नहीं करूंगा। पिता अनेकान्त का ज्ञाता था, उसने कहा-पुत्र ! कोई बात नहीं है, इतने दिनों तक तुमने मेरे साथ भोजन किया, आज से मैं तुम्हारे साथ भोजन किया करूंगा। पुत्र, पिता के सामने नतमस्तक हो गया। समस्या बनी और समाधान हो गया। इसी प्रकार स्याद्वाद को समझने वाला व्यक्ति समस्याओं में उलझता नहीं, अपितु सरलता से समस्या को सुलझाने में सफल हो जाता है।
स्याद्वाद अहिंसा की आधारभूमि भी है। आधुनिक काल में जितनी हिंसा की घटनाएं घटती हैं, उन सबके मूल में एकान्तभावना है। आचार्य आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव ने कहा था कि स्याद्वाद का सिद्धांन बौद्धिक अहिंसा है। अर्थात् बुद्धि या विचारों से किसी को बुरा न कहना। यदि बुद्धि का बैर समाप्त हो जाता है तो हिंसा भी समाप्त हो जाती है। पंजाब कश्मीर, आसाम, बिहार के वासियों में यदि इस तरह की भावना का प्रसार किया जाए तो अवश्य ही हिंसा-निवारण में सफलता मिलेगी।
राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता की रक्षा में भी स्याद्वाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। आवश्यकता यह है कि विघटक तत्त्वों को स्याद्वाद की शिक्षा दी जाए। उन्हें बताया जाए कि जैसे तुम ठीक हो, वैसे ही दूसरे भी ठीक हैं। हम सब सही हैं और सबको साथ रहना है। इसलिए राष्ट्र की एकता और अखण्डता जरूरी है। संदर्भ :
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१. धवला १२.४.२.९.२.२९५.१० २. श्लोकवार्तिक-२.१.६.५५.४५६ ३. नयचन्द्र बहद् गाथा सं० २५ ४. सप्तभंगी तरंगिनी ३०१ ५. समयसार, ता. वृ. स्यावादाधिकार ५.३.१७ ६. नय चक्र, हस्तलिखित, जैन साहित्य संशोधक १.४ पृ० १४६ ७. भगवती सूत्र १२.१० पृ० ५९२ ८. राजवार्तिक १.६.३३.१५ ९. पंचास्तिकाय १४, प्रवचनसार ११५ १०. ऋग्वेद १०, १२१ ११. ईशावारस्योपनिषद् ५ १२. कठोपनिषद् २, २० . १३. प्रश्नोपनिषद् २, ५
खड १८ अंक ४
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