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हमारी दृष्टि में बडली-शिलालेख का अक्षर-विन्यास ऐतिहासिक महत्त्व का है। उस पर उत्कीर्ण पदावली भी भाषागत वैशेष्य से उल्लेखनीय है। वस्तुतः यह लेख मध्यमिका (चित्तोड़गढ़) नगरी का है और वहां से खंडित होकर बड़ली पहुंचा है। पं. ओझा को सन् १९१२ में वह बड़ली के समीपस्थ भैरव मंदिर के भोपे से मिला था। इसका दूसरा भाग आजकल उदयपुर के प्रताप संग्रहालय (पूर्व का विक्टोरिया हॉल म्यूजियम) में (क्रमांक १६/५१८)
अजमेर-संग्रहालय के शिलाफलक पर निम्नलेख हैपंक्ति १ :-वीराय भग व (ते),, २ : ५०० चतुरासीति व (से),, ३ : कायेसालि माहिले (न),, ४ : (प्र) तिष्ठा मझिमिके (क)उदयपुर-संग्रहालय के शिलाफलक पर निम्नलेख हैपंक्ति -१ : .................. ....... ....... ... (न) भूतानं दया थं पंक्ति -२ : ..... ... ... ... ... .............. .................... ता०
दोनों शिलाफलकों के मूलपाठों को मिलाकर निम्न संशोधित उल्लेख बन सकता हैपंक्ति १ : वीराय भगव (ते) परिनिवते'
, २ : ५०० चतुरासीति व (से) वइये' ,, ३ : कायेसालि माहिले [न भूतानंदयाथं ] ,, ४ : (प्र)तिष्ठा मझिमिके (कारि) [ता०]
इस उल्लेख से भगवान महावीर के परिनिर्वाण बाद ५८४ वर्ष व्यतीत होने पर कायसालि माहिल (नियुक्ति, चूर्णी आदि में उल्लिखित गोष्ठ माहिल ? ) ने भूत दया के लिये मध्यमिका नगरी में आश्रय स्थान की १. हमने सन् १९६१ में भी उदयपुर और अजमेर संग्रहालयों के शिलाफलकों
को एक दूसरे से संबद्ध बताया था । देखें-वरदा, बिसाऊ, वर्ष-४ अंक-४ (अक्टूबर, सन् १९६१) में प्रकाशित हमारा लेख-'उदयपुर संग्रहालय के कतिपय अप्रकाशित लेख ।' २. अनुमान से प्रस्तावित पाठ ३. अनुमान से प्रस्तावित पाठ ४. उक्त दोनों शिलाफलकों में-उदयपुर-संग्रहालय में सुरक्षित शिलाफलक नगरी में प्राप्त राजा सर्वतात के लेख वाले शिलाफलक से मेल नहीं खाता; किन्तु बड़ली-लेख के शिलाफलक से मिलता जुलता है। यह शिलाफलक दाहिने भाग का हिस्सा है। इसका ऊपरी हिस्सा टूट गया है। वह भी उल्लिखित रहा होगा।