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हारबन्धा स्तुतिः
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उक्त चित्रमय हारवन्ध श्लोक में ८४ अक्षर होते हैं। उनमें से ५४ अक्षर ही लिखे जाते हैं। शेष ३० अक्षरों को निकालने की प्रक्रिया यह है कि सातों गुच्छकों के मध्य के अक्षर तीन-तीन बार बोले जाते हैं और उनका संबंध प्रत्येक बार दूसरे-दूसरे अक्षर से होता है। पहला और ८४ वां तथा तीसरा और ८२ वां अक्षर एक होता है।
श्लोक रचना की इस दुरह प्रक्रिया को तब तक समझना दुरूह होता है जब तक श्लोक के चारों चरण न लिखे जाएं । उक्त श्लोक के चारों चरण इस प्रकार हैं :
३१८.
तुलसी प्रज्ञा