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होते थे। जिनसेन ने न्यायवेत्ता समुद्रविजय का उल्लेख किया है।४८ न्यायवेत्ता अपराधी का दण्ड-निर्धारण करने में राजा का सहयोग करता था। न्याय शास्त्र के ज्ञाता हेतु 'न्यायपारायण' शब्द भी उल्लेखनीय है । अपराधी को कठोर दण्ड दिया जाता था। हरिवंश पुराण में उल्लिखित एक घटना प्राचीन न्याय व्यवस्था पर प्रकाश डालती है । किसी पुरोहित ने एक वणिक के रत्न धोखे से हड़प लिये । इसकी शिकायत राजा से की गई तो उसने वणिक को उसके रत्न वापिस दिलवा दिये। उस पुरोहित की सम्पत्ति राजा ने छीन ली, उसे गोबर खिलाया और फिर उसे मल्लों से इतना पिटवाया कि वह मर गया । गम्भीर अपराध करने पर हाथ पांव बान्धने तथा सिर काटने का दण्ड दिया जाता था ।१ अन्य पदाधिकारी
आचार्य जिनसेन ने प्रसंगवश कुछ अन्य पदाधिकारियों का उल्लेख किया है, जिनके नाम इस प्रकार है----
सामन्त २---छोटा शासक पुरोहित"---प्रमुख सलाहकार धर्माधिकारी । वह आचरण सम्बन्धी विषयों पर
राजा को सलाह देता था। माण्डलिक---सामन्त से उच्चश्रेणी का अधिकारी पहरेदार-राजा के निवास स्थान का रक्षक सेवक-निम्न स्तरीय राज्य कर्मचारी
दूत"--राजदूत अन्तःपुर व्यवस्था
अन्तःपुर में राज परिवार के लोग निवास करते थे। राजा का निवास स्थान राजमहल कहलाता था ।“ यह भवन अत्यन्त सुन्दर बना हुआ होता था। उसके निकट वापी और बगीचा भी हुआ करता । प्रायः राजा के महल महानगर में स्थित होते थे। राजकुमार के लिये अलग महल होता था।"
राजा की प्रधान महिषी पटरानी कहलाती थी । नाभिराजा की पटरानी मरूदेवी थी।" रानियों हेतु महादेवी विशेषण का भी प्रयोग किया जाता था।" यह परम्परा गुप्तकाल में भी विद्यमान थी। रानियां एक स्थान से दूसरे स्थान पर पालकी मैं बैठकर जाती थी। महत्तारिका और कंचुकी ४ एवं द्वारपालिनी" अन्तपुर की व्यवस्था में सहयोग करने वाली प्रमुख महिला पदाधिकारी थीं। ये सभी परम्परागत अधिकारी रही
होंगी।
राज्य की इकाइयां
सम्पूर्ण राज्य नगरों और गांवों में बंटा हुआ था। पर्वत एवं नदी से घिरा हुआ नगर खेट कहलाता था। केवल पर्वत से घिरा हुआ नगर खर्वट और पांच सौ गांव से घिरा हुआ मटम्ब कहलाता। जो नगर समुद्र के किनारे पर स्थित हों, जहाँ लोग नावों से उतरते हैं, वह स्थान द्रोण मुख कहलाता था। जहां बाड़ से घिरे घर हों, जहां शूद्र,
खंड १८, अंक ४
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