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मूल्य एवं शिक्षा : एक विश्लेषण
प्रकार की होती जा रही हैं। उन्हीं मूल्यों को सिखाना सरल तथा सफल होता है जो व्यक्ति के घनिष्ट अथवा सम्मानित व्यक्तियों द्वारा अनुमोदित होते हैं, जिनके स्नेह तथा भावनाओं का स्थान व्यक्ति के हृदय में होता है, अपने पर्यावरण में आवश्यकताओं की पूर्ति तथा स्नेह के अनुमोदन के लिये जिन पर हम निर्भर हैं।
उनके स्वीकृत मूल्यों को विकसित करना सरल होता है यदि मूल्य हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं तब भी उनका प्रशिक्षण कठिन होता है । इसी कारण अभी तक के मूल्य स्थापित करने के प्रयास विफल हो रहे हैं।
मूल्यों के प्रशिक्षण का उद्देश्य व लक्ष्य उनमें आमूल परिवर्तन नहीं होना चाहिए । जिस समाज का छात्र सदस्य है उसी की पृष्ठभूमि पर उसके अनुभवों के आधार पर मूल्यों की शिक्षा देना सम्भव है । मूल्यों को हम परिमार्जित व परिष्कृत परिवर्तित कर सकते हैं उनमें आमूल परिवर्तन न तो सम्भव है और न वांछनीय । अधिनियम के सिद्धान्तों व नियमों का प्रयोग करके भी हम किसी व्यक्तित्व को पूर्णरूपेण नहीं बदल सकते हैं केवल अस्थाई परिवर्तन ही ला सकते हैं क्योंकि विद्यालय में सिखाये मूल्यों का परिवार तथा निकट पर्यावरण से पुष्टीकरण नहीं हो पाता है।
प्रत्येक व्यक्ति का अपने समुदाय व समाज से तादाम्य अधिक प्रकृष्ट होता है और अध्यापक के उसके विपरीत किये प्रयास विफल हो जाते हैं। इसी कारण बहुत से मूल्यों को अध्यापक कुछ सीमा तक ही परिवर्तित कर सकता है । समुदाय, समाज तथा परिवार का प्रभाव अध्यापक के प्रभाव व प्रयत्नों का प्रतिरोध भी कर सकता है | इसके लिये छात्र के सहयोगी समाज को भी प्रभावित, प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
नवीन मूल्यों के प्रशिक्षण में प्रायः छात्र के प्रतिरोध को सावधानीपूर्वक दूर करना चाहिए। इसके लिये आवश्यक है कि हम बालक को उसी रूप में स्वीकार करें, जैसा कि वह अपने पर्यावरण में है। यदि हम प्रतिरोध से उसका विरोध करेंगे तो उसके पूर्वाग्रह और भी दृढ़ होते जायेंगे । उसे पूर्वाग्रह से मुक्त करना आवश्यक है तभी वह अवांछित मूल्यों को यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में वस्तुनिष्ठ दृष्टि से देख सकने के लिए प्रस्तुत होगा। विपक्षी विचार को अभिव्यक्त कर सकने के अवसर देना भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता ।
मूल्य- प्रशिक्षण के प्रयास तभी सफल हो सकते हैं जब उसमें संज्ञान के साथ भावपक्ष को भी यथोचित महत्त्व दिया जाये । संज्ञान व भावना दोनों को ही मूल्य प्रशिक्षण में स्थान मिलना चाहिए । मूल्यों के प्रशिक्षण में भावनाओं को प्रभावित करना आवश्यक है । उपयुक्त मूल्यों को उपयुक्त संवेगों से सम्बन्धित करना चाहिए। तिरंगे झण्डे के प्रति सम्मान शब्दों, उपदेशों से नहीं, प्रतिदिन सम्मान देने की कसमें खाने से उत्पन्न नहीं किया जा सकता है । कक्षा में सफाई का निरीक्षण करके
जनवरी- मार्च 1993
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