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मूल्य शिक्षा की एक शैक्षिक आधार दृष्टि
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मूल्य-शिक्षा की एक शैक्षिक आधार दृष्टि*
शिवरतन थानवी
जीवन में मान-मूल्य-मर्यादा का अपना विशिष्ट स्थान है । स्वार्थपूर्ति में बाधा के भय से इनके अर्थ-प्राय: विकृत हो जाते हैं । सभी मूल्य एक से नहीं होते । कुछ मूल्य स्थायी रहते हैं, सार्वकालिक और सार्वभौम होते हैं, जबकि कुछ मूल्य समय के साथ बदलते भी है। सनातन और शाश्वत मूल्यों को भी नयी प्रगति की रोशनी में समझना जरूरी होता है । सत्यं वद धर्मचर या सत्यं शिवं सुन्दर कहने मात्र से काम नहीं चलता है । सत्य, प्रेम, अहिंसा की बात बहुत बार कही है । धर्ममय आचरण के लिए भी अनेक ग्रंथ रचे गए, अनेक सम्प्रदाय स्थापित हए, किन्तु आँखें अभी तक नहीं खुली । ढाई आखर प्रेम का अभी भी बहुत दूर है । जो मूल्य कभी मनुष्य को ऊंचा उठाते हैं वे ही मूल्य कभी संकीर्ण दृष्टि से उत्पन्न व्याख्याओं के कारण विग्रह
और विनाश का कारण बनते हैं । अतएव मूल्यों के प्रति हर व्यक्ति को, शिक्षक और माता-पिता को और पूरे समाज को भी जागृत रहना चाहिए।
शिक्षा में भविष्योन्मुखी चिन्तन की दृष्टि से दो दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण हैं । एक तो प्रो. टॉर्स्टन हुसैन द्वारा तैयार किया गया 'ईस्वी सन् दो हजार में शिक्षा और दूसरा यूनेस्को के अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रो. एडगर फोर द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन लर्निग टुवी'२ इन दोनों में इस तथ्य पर बल दिया गया है कि उपलब्ध अनुसंघ न, अध्ययन आदि के संकेतों से पता चलता है कि कल का समाज संदा सीखने को उत्सुक समाज (लर्निग सोसायटी) होगा-सतत शिक्षा प्राप्त करेगा, जीवन भर-और कल के लिए जो शिक्षा होनी है उसकी प्राथमिकताएं वे नहीं रहेंगी जो आज हैं । सामाजिक-राजनैतिक मूल्यों का हमें विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास की रोशनी में वापस अवलोकन करते रहना चाहिए और देखना चाहिए कि कल के मूल्यों की प्राथमिकताएं क्या रहेंगी । परिवर्तन लाना है तो परिवर्तन की तैयारी करनी पड़ेगी, जड़ मूल्यों की पहचान भी करनी पड़ेगी और चेतना के लिए, वैज्ञानिक दृष्टि के लिए, उन सभी मूल्यों से लड़ना पड़ेगा जो प्रगति के पांवों में बेड़ियां बनकर बैठे हुए हैं और पीछे खींचते हैं । उनसे पहले मुक्त होना होगा ।
श्रद्धा, विश्वास, उपासना, पूजा कोई बुरा नहीं है किंतु विवेक को काम में लिए
*राजस्थान बोर्ड शिक्षण पत्रिका से साक्षभार
जनवरी-मार्च 1993
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