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________________ सार के परम भक्ति अधिकार अध्याय में उन्होंने लिखा है कि जो श्रावक और मुनि सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूप रत्नत्रय में लगन लगाता है उसे निर्वाण भक्ति प्राप्त हो जाती है। वस्तुतः समीक्ष्य पुस्तक में "जैन धर्म और भक्ति" विषयक प्रभूत् सामग्री का संकलन हो गया किन्तु उसमें से सारतत्त्व निकालने का उत्तरदायित्व लेखक ने पाठक पर छोड़ दिया है । कतिपय प्रसंगों में भक्ति की सदाशयता को भी भुला दिया लगता है फिर भी विचारोत्तेजक होने से पुस्तक पठनीय है । २. भारतरत्न डॉ अम्बेडकर और बौद्ध धर्म । लेखक-डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर । प्रकाशक-सम्मति रिसर्च इन्स्टीट्यूट ऑफ इन्डोलोजी (आलोक प्रकाशन) सदर, नागपुर। प्रथम संस्करण -१९९१ । मूल्य-साठ रुपए । पृष्ठ१७६+८१। डॉ० भीमराव अम्बेडकर सदियों से शोषित, समाज बहिस्कृत, पद्दलित, उपेक्षित और अछूत-अस्पृश्य माने जाने वाले जाति-वर्गों के प्रतिनिधि थे। महाराष्ट्र की सन् १९३१ की जनगणना में ऐसे जाति-वर्गों की संख्या ४२९ थी जिनमें महार, चमार, भंगी, चण्डाल आदि प्रमुख मानी जाती थीं। डॉ० अम्बेडकर महार (महार्ह =सर्वाधिक पूजनीय) जातिवर्ग में जन्में और महारों को पुनः अपना गौरव दिलाने के लिए जीवन भर सतत संघर्ष करते रहे। . महाराष्ट्र में १९ वीं सदी तक पेशवा (चितपावन ब्राह्मणों का) शासन था और उस शासन में अस्पृश्य जातियों को एक हाथ में झाडू और दूसरे में थूकने का बर्तन तथा शरीर पर मात्र एक लंगोटी लगाकर घर से बाहर निकलना पड़ता था। यह प्रथा सन् १८१७-१६ के मराठा युद्ध के बाद टूटनी शुरू हुई और उसके केवल ७१ वर्ष बाद, १४ अप्रेल १८९१ को डॉ० भीमराव का जन्म हुआ। इसलिए अस्पृश्यता के कडूवे चूंट पीकर आर्थिक विपन्नता के साथ समाज में प्रतिष्ठा पाने को उनके द्वारा किया गया संघर्ष, मानव-पुरुषार्थ का अनुकरणीय उदाहरण बन गया । डॉ भागचन्द्र जैन 'भास्कर' को सन् १९७२ में पी डब्लू एस कॉलेज, नागपुर में डॉ. बाबासाहिब पर तीन भाषण देने पड़े तो उन्होंने उनपर लिखे और उन द्वारा लिखे साहित्य का अवलोकन किया । वे स्वयं बौद्ध साहित्य के अधिकारी विद्वान् हैं बाबासाहिब की पुस्तक-'बुद्ध और उनका धर्म' ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और वे "डॉ. अम्बेडकर और बौद्ध धर्म" पर यह पुस्तक लिखने को प्रोत्साहित हुए । इसके अलावा डॉ० भास्कर का यह भी मानना है कि बौद्ध धर्म संसार में सर्वाधिक लोकप्रिय है। उसकी परम्परा को न मानने वाले भी उसके प्रशंसक हैं और संभवतः, उनकी राय में यही धर्म तीसरे विश्व युद्ध की विभीषिका से संसार को बचा सकता है। लेखक ने बौद्धधर्म और डॉ० अम्बेडकर के संबंध में बहुत सी बातें कही हैं जो बाबासाहिब के अनुयायी और बौद्धों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। राजनीतिक क्षेत्र में डॉ० अम्बेडकर और महात्मा गांधी में जो चूहे बिल्ली का-सा खेल चला उसका शायद यहां खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ६२) २५९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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