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'वह तीर्थंकर की प्रतिमा ।' तत्पश्चात् हेमचन्द्र ने स्मृति का लक्षण किया कि "वासना की जागति जिसमें कारण हो और 'वह' ऐसा जिसका आकार हो, वह ज्ञान ‘स्मृति' है।" यद्यपि हेमचन्द्र ने वादिदेव सूरि द्वारा किए गए स्मति के लक्षण के 'पहले जाने हुए पदार्थ को जानने वाला' अंश को स्मृति के लक्षण में समाविष्ट नहीं किया । किन्तु उपर्युक्त स्मृति के लक्षणों में तथा हेमचन्द्र द्वारा किए गए लक्षण में कोई मौलिक भेद नहीं है, क्योंकि उपर्युक्त सभी लक्षणों में संस्कार की प्रकटता से होने वाले तथा वह' इस आकार वाले ज्ञान को स्मृति कहा गया है। इसके पश्चात् धर्मभूषण यति ने 'वासना की जागृति जिसमें कारण हो' इस अंश को हटाते हुए 'पहले ग्रहण किए हुए पदार्थ को विषय करने वाला, अंश को स्वीकार करते हुए स्मृति का लक्षण किया कि "पहले ग्रहण किए हुए पदार्थ को विषय करने वाला तथा 'वह' जिसका आकार हो, उस ज्ञान को स्मृति कहते हैं।" ___ यशोविजय ने स्मृति के उपर्युक्त लक्षणों से भिन्न लक्षण किया। उसके अनुसार "अनुभवमात्र से उत्पन्न होने वाला ज्ञान स्मृति है, जैसे 'वह तीर्थकर की प्रतिमा ।" यशोविजय द्वारा किया गया यह लक्षण अस्पष्ट एवं संदिग्ध है, क्योंकि इसमें 'अनुभव मात्र से उत्पन्न' अंश का समावेश किया गया है, जो इसे अस्पष्ट बना देता है । किन्तु फिर भी, इस लक्षण को 'अनुभव मात्र.से उत्पन्न' अंश के अर्थ को स्पष्ट करके समझा जा सकता है । 'अनुभव मात्र से उत्पन्न' के दो अर्थ हो सकते हैं-पहला, हमारी ज्ञानेन्द्रियों का वस्तुओं के साथ सम्बन्ध होने पर उत्पन्न होने वाला ज्ञान और दूसरा, अनुभव रूप धारणा अर्थात् इन्द्रिय प्रत्यक्ष स्मृति का निमित्त है, प्रत्यभिज्ञान आदि नहीं । पहले अर्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि फिर इन्द्रिय प्रत्यक्ष और स्मृति में कोई भेद नहीं रह जायेगा । इसलिए दूसरे अर्थ को ही स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि वह अधिक युक्ति संगत प्रतीत होता है, क्योंकि इसको स्वीकार करने पर पूर्वोक्त लक्षणों में तथा इस लक्षण में कोई भेद नहीं रह जाता है और वह तीर्थंकर की प्रतिमा' इस अंश का भी तर्क संगत सम्बन्ध बैठ जाता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि इन्द्रिय प्रत्यक्ष-धारणा या संस्कार-जिस ज्ञान का निमित्त है तथा उसके-धारणा या संस्कार-जागृत होने पर होने वाला
और अनुभूत अर्थ को विषय करने वाला तथा 'वह' जिसका आकार हो, स्मृति है । स्मति के इस लक्षण का विश्लेषण करने पर स्मृति के पांच प्रमुख घटक प्रकाश में आते हैं, जिनसे स्मृति प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है । ये घटक एवं प्रक्रिया इस प्रकार से हैं
अर्थ->अर्थ का अनुभव→धारणा या संस्कार→धारणा या संस्कार की जागृति→ अनुभूत अथं का स्मरण ।
स्मृति प्रक्रिया में इन सभी घटकों का होना आवश्यक है। यदि इनमें से कोई एक या एक से अधिक घटक नहीं हो तो स्मृति संभव नहीं है । अर्थ नहीं हो तब अनुभव सम्भव नहीं हो सकता है और अर्थ का अनुभव नहीं हो तब उसकी स्मृति नहीं हो सकती है, क्योंकि अर्थ और अर्थ के अनुभव के बिना धारणा या संस्कार संभव
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तुलसी प्रज्ञा
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