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________________ ७. वही, पृ० ५८६, फलक ३७० ए। ८. वही, वाल्यूम २, फलक १४८ बी। ९. द्रष्टव्य बी० सी० भट्टाचार्य, द जैन आइक्नोग्रफी, दिल्ली, १९७४, फलक ४। १०. जर्नल ऑव द यू०पी० हिस्टारिकल सोसाइटी, वाल्यूम २३, माग १-२, १९५०, पृ० ५९। ११. वही, पृ० ६२ । १२. वही, पृ० ६४ । १३. द्रष्टव्य प्रमोदचन्द्र, उपरोक्त, कैटेलॉग सं० ४०७, पृ० १४३, फलक १३१ । १४. वही कैटेलॉग सं० ४५५, पृ० १५८, फलक १५४ । १५. ए० घोष, उपरोक्त, वाल्यूम ३, पृ० ५६२, फलक ३३५ । १६. वही, पृ० ५७२, फलक ३५७ । १७. वही, वाल्यूम २, फलक १५१ । १८. वही, वाल्यूम ३, फलक ३३३ । १९. वही, फलक ३४१ । २०. वही, फलक ३६३ बी। २१. वही, वाल्यूम २, फलक २५८ । २२. उमानन्द प्रेमानन्द शाह, 'जैन आइक्नोग्रफी', जैन आर्ट एण्ड आर्कीटेक्चर, वाल्यूम ३, पृ० ४७६ । २३. बी० सी० भट्टाचार्य, उपरोक्त, पृ० २०, टिप्पणी १ । २४. उमानन्द प्रेमानन्द शाह, उपरोक्त, पृ० ४७६ । २५. वही, पृ० ४६७ । २६. रूपमण्डन, ६.३३-३५ द्रष्टव्य बी० सी० भट्टाचार्य, उपरोक्त, भूमिका (बी०एन० शर्मा), पृ० २१ । २७. इस सन्दर्भ के लिए लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अन्तर्गत कला-इतिहास विभाग के डा० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी का आभारी है। अजानु लम्बबाहुः श्रीवत्सांगः प्रशान्तमूर्तिश्च । दिग्वासास्तरूणो रूपवांश्च कार्योऽर्हतो देवः ।। -वराहमिहिर संहिता (४५.५८) खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०) १९९२ २०५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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