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________________ चारूचण्द्र के "महाबलमलयसुंदरीरास" की कई प्रतियां प्राप्त हैं । २०. शर्मा' डा० ईश्वरानन्द : "कवि जिनहर्षकृत मलयसुंदरीचरियं एक पर्यवेक्षण" नामक लेख. मरूधरकेशरी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ३५२-३६१ २१. जैसलमेर कलेक्शन : सं०-मुनि पुण्यविजय, पृ० २००, २१ वीं पोथी में संख्या १७५ की प्रति २२. भदंतो मलय सईय चरियं सुछंद-पाइक्कए । अप्याण बुहीमाहा विय पडलं योहा वणमेवाणिय ।। श्री हेमग्गह-कारणे हरि कवि सीलस्स माहप्पउ, चाहे सज्जण-संगमे पियजणेमेलं च आणंदर्ण ॥३८५॥ २३. मलयसुंदरीचरियं (पूना पांडुलिपि), पत्र पृ० ३९ २४. वही, पत्र पृ० ४४ २५. वही, पत्र पृ० ४२ २६. वही, पत्र पृ० ४२ २७. वही, पत्र पृ० ४४ २८. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२ एवं ३०५, आदि । शतं कुलानां प्रथमं बभूव तथा पराणां त्रिशतं समग्रम् ।। एते भवन्ति सुकृतस्य लोके येषां कुले सन्नयसतीह विद्वान् । -शाट्यायनीयोपनिषद (३०) १८८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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