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________________ में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सभा (सी आई टी इ एस) पृथ्वी के मित्र आदि । लोगों में चेतना जागृत करने के लिए कई प्रकाशन भी हुए हैं। (आई यू सी एन) की रेड डेढा पुस्तके, पृथ्वी के मित्र-प्रन्यास द्वारा खतरे में पड़ी जातियां, "यू एस ए २०००" विस्तृत रिपोटें आदि प्रमुख प्रकाशन हैं । कई सरकारों ने भी इस सम्बन्ध में कई अधिनियम बनाए हैं । वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम, घुमक्कड़ पक्षी अधिनियम, बन्य पौधे अधिनियम, वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम जो भारत सरकार द्वारा देश में वन्य जीवन के संरक्षण के लिए १९७२ में पास किया गया था, आदि प्रमुख अधि. नियम हैं। आजकल हमारे शैक्षिक पाठ्यक्रम में प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने के लिए पर्यावरण सम्बन्धित आचार-संहिता पर बड़ा जोर दिया जा रहा है । पर्यावरण सम्बन्धी आचार-संहिता, सभी जीवों के प्रति आदर भाव तथा प्रकृति में सौन्दर्य की सुरक्षा की भावना बनाने को बनी है। विश्व के सभी धर्म भी जीवों, पशुओं एवं पौधों के संरक्षण के बारे में निर्देश देते हैं। विविध प्राकृतिक संसाधनों जैसे—पेड़-पीपल, बरगद, आम, इमली, महुआ; नदियां-जैसे गंगा, यमुना, पशु जैसे गाय, भैंस, तथा यहां तक कि सूर्य, चन्द्रमा, महासागर, बादल आदि के पूजन के लिए हिन्दू-धर्म में प्रावधान है। जैन-धर्म सभी जीवों तथा पौधों में समत्व के विचार का समर्थन करता हैं तथा उनको हानि पहुंचाने को मना करता है। मुसलमान भी पशुओं को भोजन के लिए मारने के विचार का समर्थन नहीं करते । इसाइयों की धार्मिक पुस्तक में उल्लेख हैं कि “हमारा परमात्मा एक ही है । यह पृथ्वी उसके लिए मूल्यवान् है, तथा पृथ्वी को क्षति पहुंचाना इसके सृष्टिकर्ता का अपमान करना है।" अतः जो काम तुम अपने प्रति अन्यों से करवाना चाहते हो तुम भी उनके प्रति ऐसा ही करो। (मैथ्यू ७:१२) वन्य साम्राज्य का निराधार विनाश परमात्मा द्वारा किये गये प्रयास का अपमान है। (सिनेसिस' १:२८) इस प्रकार विनाश से रहित विकास पर आजकल लगातार जोर दिया जा रहा है। प्रतिपद्दिनतोऽकाले अमावस्या तथैव च । पौर्णमास्यां स्थिरी कुर्यात्स च पंथाहि नान्यथा ॥ -योगकुण्डल्युपरिषद् (३.२) १८० तुलसी प्रज्ञा national Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal us www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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