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अर्थात् चिन्ता जो प्राची दिशा है उस ओर अभिमुख होने पर नये चिन्तन का सूरज उगता है । यह कवि की सफलता है ।
दूसरी कृति मनस् क्रान्ति में पर्युषण पर्व पर लिखी तीन गद्य रचनाएं हैं । 'पर्युषण पर्व की महिमा' 'कल्पसूत्र की परम्परा' और 'जैन तप' पर लिखी ये तीनों रचनाएं समाचार पत्रों में पूर्व प्रकाशित हैं। पाठकों ने उन्हें पसंद किया इसलिए पुनः पुस्तकाकार ले पाई हैं । यही उनकी सफलता है ।
वास्तव में आज जीवन बहुत व्यस्त और भौतिक जैसा हो गया है । उसे आध्यात्मिक बाना पुनः प्रदान करने के लिए बड़े-बड़े ग्रन्थ, महाकाव्य और महाप्रबन्ध, कारगर नहीं हो सकते । उन्हें संभवतः यह जीवन मात्र देखकर रख देने की आदत बना चुका है । इसलिए थोड़ा-सा छोटा-सा लगने वाला नाविक का तीर जैसा बिहारीदास का दोहा, चाहिए जो सुन्दर लगे और अगणित उद्योत पैदा करे तो व्यस्त जीवन का मानसिक तनाव विगलित हो जाएगा और जीवन में आध्यात्मिकता का पुनः प्रवेश हो सकेगा ।
मुनिश्री की ये लघु पुस्तकाएं इस दृष्टि से देखी जाए तो कुछ आशा बंधती है । मुद्रण, गेटअप और साफ सुथरी, कम मूल्य की प्रस्तुति भी सोर्ट स्वीट के ग्राहक मन को लुभाती हैं ।
प्राप्तिस्वीकृति :
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१. जैन योग ( भाग - एक और भाग दो) — कलादर्शन संस्थान, औधोगिक क्षेत्र बैंक के पास, बीकानेर | मूल्य ३० /- रुपये ( दोनों भाग ) । संपादक - डॉ० प्रकाशवती शर्मा एवं डॉ० मुरारी शर्मा ।
२. जैन काल गणना । लेखक - चन्द्रकांतबाली | प्रकाशक --
पीतमपुरा, दिल्ली- ३४/- मूल्य १५० रुपये |
३. श्री रामदेव प्रकाश ( बड़ा ) । लेखक - श्री रामसिंह वरणा । श्री हमीर सिंह एवं शिवनाथ सिंह राजपुरोहित, वरणा (जोधपुर) |
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- इतिहास भारती,
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प्रकाशक
- प० सो०
तुलसी प्रज्ञा
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