SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थितिवश गलत रास्ते पर चलने लगता है और जैसे ही परिस्थिति के फन्दे से वह निकलता है तो अपने आप को सबसे खुशनसीब समझता है । शत्रुतावश व्यक्ति अपने दुश्मन से प्रतिकार के लिए किस निम्न स्तर तक उतर आता है इसी का रोमांचक चित्रण 'दुर्बलताओं की दोजख " में हुआ है। भाई-बहिन, पुत्र पिता के रिश्ते में भी दरार आ जाती है किन्तु प्यार के रिश्ते की नींव इतनी गहरी होती है कि उसमें दरार या विघटन की संभावना नहीं रहती । इसी सत्य को उकेरा है लेखक ने अपने "प्यार के गणित " कहानी में । इस कहानी की विशिष्टता इस कृति का शीर्षक होने से परिलक्षित होती है । इस कथा में नायक की पीड़ा को सहयोगियों ने अपनी पीड़ा समझकर जिस आत्मियता और सक्रियता से उपचार किया उससे लेखक त्रासदी के अन्त के साथ इस दर्शन को उद्घाटित करने में शत-प्रतिशत सफल दिखलाई पड़ता है कि सहयोग की बुनियाद पर कोई भी समस्या समाधान रहित नहीं रहती । दर्द, निराश्रय आश्रम, चोट, बीता जीवन, बिसरे दायित्व आदि कहानियां भी किसी न किसी सत्य 'की अभिव्यक्ति के कारण पाठकों के अन्तर्मन को झकझोरती दीख पड़ती हैं । इन कहानियों में संवेदन है, समस्या है और समाधान भी है । ये सूक्ष्मदर्शी यंत्र की भांति मानव के विविध पहलुओं को विविध नजरों से देखती हैं । प्रेमचन्द की सहजता आज इतिहास के पन्ने में सिमट कर रह गई थी, उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास अब होने लगा दीखता है। कौतूहाल - निर्वाह से पाठक को अन्त तक बांधे रखने अधिकांश कहानियां सक्षम हैं मुख्य पृष्ठ आकर्षक है । कृति पठनीय और संग्रहणीय । है । आनन्द प्रकाश त्रिपाठी "रत्नेश" व्याख्याता — ब्राह्मी विद्यापीठ लाडनूं–३३१३०६ ५. चिन्ताः प्राची / चिन्तनः सूरज और मनस् क्रान्ति - लेखक - मुनि विमल सागर | प्रकाशक — जीवन निर्माण केन्द्र, ए ५ सम्भवनाथ एपार्टमेंट, अहमदाबाद१३ । प्रथम संस्करण - १९९२ । मूल्य - ५ ) + ५) रुपये | पृष्ठ ३२+३२ । मुनि विमलसागर, आचार्यश्री पद्मसागर सूरिजी महाराज के युवा शिष्य हैं । पिछले दिनों में आपने हिन्दी और गुजराती में कुछ पुस्तकें लिखी हैं जो जीवन निर्माण केन्द्र अहमदाबाद से प्रकाशित हुई हैं । 'सपना यह संसार' - नामक उनकी नई कृति के प्रेस में होने की जानकारी भी मिली है । मुनि विमल सागर गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में लेखनी चला रहे हैं । समीक्ष्यकृति चिन्ता: प्राची / चिन्तनः सूरज उनकी चौबीस क्षणिकाओं का संग्रह है । कवि का विश्वास है कि ये क्षणिकाएं भयावह संत्राण और तनाव के बीच स्वस्थ चिन्तन के नये वातायन उन्मुक्त करती हैं । जिसका आज उसका कल, जीवन की सार्थकता, सच है आज ही, सफलता का रहस्य. अनुभव की सीख, प्रारब्ध और पुरुषार्थं तथा सुख का राज - आदि क्षणिकाएं पाठक के चिन्तन को रोकती हैं, आकर्षित करती हैं और नई दिशा देती हैं । खण्ड १८, अंक ३ ( अक्टू० - दिस०, ९२ ) २६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy