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________________ काल का स्वरूप और उसके अवयव* Cडॉ. परमेश्वर सोलको अथर्ववेद में काल की व्याख्या प्राप्त होती है। वहां उन्नीसवें काण्ड में दो सूक्त (५३-५४) इस प्रकार हैं१. कालो अश्वो वहति सन्त रश्मिः सहस्राक्षो अजरो भूति रेताः । तमारोहन्ति कवयो विपश्चितस्तस्य चक्रा भवनानि विश्वा ।। स एव सं भुवनान्याभरत् स एव सं भुवनानि पर्येत् । पिता सन्नभवत्पुत्र एषां तस्माद्वैनान्यत्पर मस्ति तेजः ।। काले मनः काले प्राणः काले नाम समाहितम् । कालेन सर्वानन्दन्त्यागतेन प्रजा इमाः ।। कालः प्रजा असृजत कालो अग्रे प्रजापतिम् । स्वयम्भूः कश्यपः कालात्तपः कालादजायत ।। २. कालोह भूतं भव्यं च पुत्रो अजनयत्पुरा। कालादृचः समभवत् यजुः कालाद जायत । इमं च लोकं परमं च लोकं पुण्यांश्च लोकान् विधृतीश्च पुण्याः । सर्वाल्लोकानमिजित्य ब्रह्मणा कालः स ईयते परमोन देवः । -कि कालरूपी अश्व प्रभूत् सामथ्र्यवान् है । वह सदा जवान रहता है और सप्त रश्मियों से सहस्राक्ष होकर सर्वत्र चलायमान रहता है किन्तु उस पर वे मनीषी ही आरूढ हो पाते हैं, जो उसके समस्त अवयवों को जान लेते हैं । वह भुवनों का आमरण और निर्माण करने वाला है । वही पिता और पुत्र रूप में प्रकट होता है । उसी में मन, प्राण और संज्ञा समाहित होती है। उसी से सब कुछ निर्मित होता है । उसने प्रजा और प्रजापति को बनाया है। स्वयंभू कश्यप और उसका तप (संसार) भी उसी में उत्पन्न है। ___ काल भूत् और भविष्यत् की सृष्टि करता है। उसी से ऋग्वेद, यजुर्वेद प्रकट हुए हैं। यह लोक, परमलोक और पुण्यलोक-सभी कालरूप ब्रह्म निमित्त हैं । इसलिए यह काल परमदेव है । वृहदारण्यक उपनिषद् (१.२.४) में काल को मानव-जन्म से जोड़ा गया है । वहां लिखा है कि उसने इच्छा की कि मैं दूसरी आत्मा के रूप में प्रकट होऊ ! और वह परिमित काल में प्रकट हो गया । पहले संवत्सर न था किन्तु आत्मा के इस प्रकटीकरण की अवधि-रूप “संवत्सर" बन गया, क्योंकि इस परिमित काल में आत्मा ने अपने-आपको दूसरे रूप में सृजन कर लिया ।' मंत्री उपनिषद् (६- ४-१६) में काल को प्रकारान्तर से व्याख्यायित किया गया * यह लेख की पहली कड़ी (किश्त) है । खण्ड १८, अंक २ (जुलाई-सित०, १२) ७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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