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________________ व्यवहार नय से जीव को जड़ स्वीकार करना होगा, क्योंकि व्यवहार नय से पुद्गल के धर्मों को जीव के स्वीकार किया है । पुनः प्रश्न होता है कि पुद्गल का जीव के . साथ क्या सम्बन्ध है ? आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार जीव तथा पुद्गल का संयोग संबंध है जैसे दुध और पानी का संबन्ध है। किन्तु इस दृष्टान्त द्वारा जीव तथा पुद्गल का संबंध सिद्ध नहीं है. क्योंकि दूध तथा पानी समान धर्मी हैं, जबकि, जीव और पुद्गल दो विपरीत स्वभाव वाले द्रव्य हैं, उनमें ऐसा सम्बन्ध कैसे सम्भव है ? दूसरा यदि संयोग सम्बन्ध है तो इस संयोग का कारण क्या है ? यह संयोग स्वत: होता है या किसी अन्य के निमित्त ? यहां पुद्गल तथा जीव के सम्बन्ध को समझने के लिए पुद्गल के स्वरूप को जानना अपेक्षित है । पुद्गल द्रव्य जिस द्रव्य में रूप, रस, गंध और स्पर्श ये चारों गुण पाये जावे वह 'पुद्गल" द्रव्य है।४ रूप, रस, गंध और स्पर्श पुद्गल के नित्य सहभावी धर्म हैं तथा शब्द, बन्ध, स्थूल, छाया आदि अनित्य क्रमभावी धर्म है ।५ पुद्गल रूपी धर्म से युक्त होने के कारण मूर्त है और अनेक प्रदेश में रहने के कारण अस्तिकाय हैं। वस्तु जगत् के सभी पदार्थ पुद्गल द्वारा निर्मित हैं । आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार पांच इन्द्रियां तथा उनके भोग विषय, शरीर, मन, कर्म, सभी मूर्त द्रव्य पुद्गल हैं। पुद्गल के दो प्रकार --परमाणु और स्कन्ध है । जिसमें एक रस, एक रूप, एक गंध और दो स्पर्श हो वह परमाणु है । आचार्य कुन्दकुन्द ने परमाणु का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है कि जो स्वयं ही आदि, मध्य और अन्त हो तथा इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, ऐन अवभाज्य पुद्गल द्रव्य ‘परमाणु" है । परमाणु नित्य, शब्द रहित, एक और अविभाज्य है जो मूर्त स्कन्धों से उत्पन्न भी होता है और उनका कारण भी है ? यहां प्रश्न होता है कि जो नित्य है वह उत्पन्न कैसे हो सकता है ? और जो जिसका कारण है वह उससे उत्पन्न कैसे हो सकता है ? अर्थात् कारण कार्य से उत्पन्न कैसे हो सकता है ? दूसरा द्रव्य की उत्पत्ति कैसे स्वीकार की जा सकती है ? प्रत्येक परमाणु चार गुण वाला है और इन परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के संयोग से नानाविध पदार्थ बनते हैं।" पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारों तत्त्व भिन्न प्रकार के परमाणुओं से निर्मित नहीं, अपितु एक ही प्रकार के परमाणुओं से उत्पन्न हैं । इन पदार्थों के निर्माण में परमाणुओं का बन्ध कुछ विशिष्ट धर्मों से होता है । यह धर्म है-स्निग्धता तथा रूक्षता । ३२ इन्हीं स्निग्धता और रूक्षता से परमाणुओं का संघात बनता है, अर्थात् दो या दो से अधिक परमाणुओं के समूह को "स्कन्ध" कहते हैं । इन स्कन्धों के परस्पर टकराने से शब्द की उत्पत्ति होती है ।" आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार समस्त परमाणुओं से मिलकर बना हुआ पिण्ड स्कन्ध है। किन्तु ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण विश्व एक ही स्कन्ध सिद्ध होता है, और एक ही स्कन्ध होने पर परस्पर टकराव कैसे संभव है ? क्योंकि टकराव के लिए कम से कम १२६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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