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चार्य-जटाचार्य-विश्रुतश्रुतकीाचार्य पुरस्सरमप्पा-चार्य परम्परॅय कुडुगॅ भव्योत्सवमं ।।
आदिपुराण, १/१२ ८. वयर्लोकोत्तम विसुवॉडनधरत्युन्नतकॉडकुंदाचार्य चरित्ररत्नाकर रधि कगुणसज्जटासिंहनंद्याचार्यीकूचिभट्टारकरुदितयमिक्कपे पिगें लोकाश्चर्यनिष्कर्मरॅम्म पॉरमडिसुगॅ संसारकांतारदिदं ।।।
-धर्मामृत, १/१३ ९. बिदिरपोदर तॉलपॅनें तू-गिदाडाबिदिजिनमुनिप- जटाचार्य र धर्यद् पंपु
गेल्दुदु पसर्ग दलुर्के येननिसि नेगे दुमिगॅ सोगयिसिदं ।। -पावपुराण, १/१४ १०. वंद्यर् जटासिंहणंद्याचार्यादींद्रण द्या चार्यादिमुनि पराकानणंद्यर्पथिवियॉल गॅल्लं ।।
-अनन्तनाथ पुराण, १/१७ ११. नड वलियोल् तन्नं समं बडदारु नडदरिल्ल गडमते यु । नुडियुं नडेदुवो पदुलिके येडेगे जटा सिंहणं दि मुनिपुंगवना ।।
पार्श्व पुष्पदंत-पुराण, १/२९ १२. कार्यविदर्हद्वल्या-चार्य-जटा सिंहनदिनामोद्दामाचार्यवरगृध्रपिछाचार्यर चरणारविदद्वंदस्तोत्रं ।।
-शांतिनाथपुर ण, १/१९ १३. धैर्यपरगृध्रपिछा-चार्य र जटा सिंहनदि जगतीख्याता-चार्य र प्रभावमत्य.श्चर्यमदं पागलू व डब्जजजंगम साध्यं ।।
नेमिनाथपुराण, १/१४ १४. हरिवंश (जिनसेन) १/३५ १५. देखें-जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय, प्रो० सागरमल जैन १६. ......."यापनीय संघ प्रतीतकण्डर्गणाविध..."। जैन शिलालेख संग्रह, भाग २
-लेख क्रमांक १६० १७. देखें-वरांगचरित, भूमिका (अंग्रेजो) पृ० १६ १८. देखें-जैन शिलालेख संग्रह, भाग-२ लेख क्रमांक २६७,२७७,२९९ १९. वही-भाग-२ लेख क्रमांक २६७,२७१,२९९
(ज्ञातव्य है कि काणू रगण को मूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय और मेप पाषाण गच्छ से जोड़ने वाले ये लेख न केवल परवर्ती हैं अपितु इनमें एकरूपता भी नहीं
२०. वरांगचरित, सं-ए० एन० उपाध्ये, भूमिका (अंग्रेजी) पृ १६ पर उद्धृतवंधर् जटा सिंहणयाचार्यदींद्रणंद्याचार्यादि मुनि परा काणू र्गणं"।
-अनन्तनाथ पुराण १/१७ २१. देखें-जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय, प्रो० सागरमल जैन प्र० १४५-१४६ २२. देखें-वरांगचरित, सं० ए० एन० उपाध्ये, भूमिका (अंग्रेजी) पृ. १७ २३. देखें-यापनीय पर कुछ और प्रकाश, ए० एन० उपाध्ये, अनेकांत, वीर निर्वाण
विशेषांक १९७५ ।
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तुलसी प्रज्ञा
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