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४. 'तुलसी प्रज्ञा' अनुसंधान पत्रिका खण्ड १८ का प्रथम अंक प्राप्त हुआ और यही था
इस पत्रिका के पहली बार अवलोकन करने का शुभावसर । वस्तुतः इसका बाह्यावरण, जितना आकर्षक एवं मनोरम है, उतना ही इसका अन्तः पक्ष भी सारगर्भित एवं वैदुष्य पूर्ण है । हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अनुसंधान पूर्णं लेखों से चमत्कृत आपका यह प्रयास जैनविद्या में हो रहे शोध कार्यों के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है । इसके विद्वान लेखक भी साधुवाद के पात्र हैं जो अपने ज्ञान- पुंज से जैन जगत् को समलंकृत कर रहे हैं । इस अंक में प्रकाशित मुनि श्री गुलाबचन्द 'निर्मोही' के लेख तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव एवं विकास से अत्यन्त प्रभावित हूं |
५. इस अंक में मुनि श्री गुलाबचन्दजी का लेख - 'तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव एवं विकास' अत्यन्त श्लाघनीय है । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की आशुकविता एवं मंदाकांता छन्द में निबद्ध खण्ड काव्य - अश्रुवीणा के पद महाकवि कालिदास की कृति मेघदूत की स्मृति दिलाते हैं ।
तेरापंथ धर्म संघ में संस्कृत वाङ्मय के प्रचार व विकास के लिए आचार्य श्री तुलसी द्वारा किए जा रहे प्रयास स्तुत्य व अनुकरणीय हैं । इस दिशा में अनेक विद्वान् मुनि सतत् साधना में संलग्न हैं ।
- डॉ केशव प्रसाद गुप्त
चरवा ( इलाहबाद )
- २१२२०३
मुझे पूर्ण विश्वास है कि 'तुलसी प्रज्ञा' आपके संपादन काल में अप्रत्याशित रूप से प्रगति की ओर बढ़ती रहेगी ।
खंड १८, अंक २ (जुलाई-सित०, ९२ )
6. Thank you for your Tulsi Prajna of April - June 1992 which was delivered in my absence. Here and there I gone through your editorial, Punch Parmesthi Pad and critical annotation on article of Dr. Ramjee Singh. The quality of your Magazine has sizably improved. You deserve appreciation and admiration.
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- वैद्य सोहनलाल दाधीच निदेशक, सेवाभावी कल्याण केन्द्र लाडनूं
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