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३. ऋषिराय सुजश
३. गणपति सिखावण ४. ऋषिराय पंच ढालियो ४. छोटी मर्यादा ५. सतजुगी चरित्र
५. सिखावण री चोपई ६. हेमनवरसो
६. परम्परा री जोड़ ७. हेम चोढालियो
७. मोछब री ढालां ८. स्वरूप नवरसो
८. टालोकरां री ढाला ६. स्वरूप विलास
६. टहुको १०. भीम विवास
१०. परम्परा रा बोल (सेज्यातर आदि) ११. मोतीजी रो पंचढालियो ११. परम्परा रा बोल (गोचरी संबंधी) १२. शिवजी रो चोढालियो १२. गण विशुद्धिकरण हाजरी १३. कर्मचंद गीतिका
१३. लघुरास १४. शांति विलास
न्याय १५. उदयचंदजी रो चोढालियो
नय चक्र जोड़ १६. हरख चोढालियो १७. हस्तूजी-कस्तूजी रो चोढालियो ५८. सरदार सुजश व्याकरण
उपदेश १. पंचसंधि की जोड़
१. उपदेश की चोपई २. आख्यात की जोड़
२. उपदेश कथा रत्नकोश ३. साधनिका
इस तरह जयाचार्य ने तेरापंथ के साहित्य में जबरदस्त अभिवृद्धि की। उन्होंने बहुत छोटी अवस्था में ही लिखना शुरू कर दिया तथा अंत में तो संघ-व्यवस्था से मुक्त होकर ध्यान-स्वाध्याय तथा साहित्य-निर्माण के लिए ही अपने को खपा दिया। उनका शासन काल तेरापंथ का स्वणिम काल है । साहित्य-निर्माण की दृष्टि से भी उन्होंने भारी प्रयत्न किया है।
जयाचार्य के बाद आचार्य-परम्परा में साहित्य वृद्धि का क्रम बढ़ाने वालों में मघवागणी एवं माणकगणी का नाम आता है । पर वह क्रम पूर्वाचार्यों की जीवनी लेखन तथा कुछ ढालों-चोपाइयां तक ही सीमित रहा । वर्तमान आचार्य तुलसी ने इस दिशा में कुछ नई जमीन तोड़ी है । आपने हिन्दी संस्कृत में तो प्रभूत साहित्य लिखा ही हैं, पर राजस्थानी में आपके द्वारा निर्मित ग्रन्थों की एक लम्बी सूची है, वह इस प्रकार है
१. माणक महिमा २. डालिम चरित्र ३. कालूयशोविलास ४. मगन चरित्र
खंड १८, अंक १ (अप्रैल-जून, १२)
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