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प्राप्त होता है। २. अन्तः करणेन्द्रिय ग्राह्य बिम्ब
१. भाव बिम्ब-हृदय के भावों-भक्ति, श्रद्धा, रति, शोक, भय, जुगुप्सा, हास्य, क्रोध, आश्चर्य आदि भावों को प्रकाशित करने वाले बिम्ब भाव-बिम्ब कहे जाते हैं ।
अश्रुवीणा में इनका आधिक्य है
भक्ति-उपास्य या सेव्य में अनन्यानुरक्ति भक्ति है। इसमें सब कुछ उपास्य के चरणों में समर्पित कर दिया जाता है । भक्ति में अद्भुत शक्ति है, जो भगवान् को भी पिघला देती है
"भक्त्युरेकाद् द्रवति हृदयं द्रावयेत्तन्न कं कम् ।"
श्रद्धा-अश्रुवीणा में श्रद्धा के अनेक बिम्ब उपलब्ध होते हैं। श्रद्धा की जो भावधारा प्रथम श्लोक में स्फूर्त होती है वह अन्त तक उपचित होती हुई पाठकों को आह्लादित करती रहती है । प्रथम श्लोक में उसका सुन्दर दर्शन होता है-श्रद्धा वैसे लोगों से प्यार करती है जो प्रपञ्च से उपरत हैं; जिनका मन तक की परिणामविरसता से ऊब गया है-श्रद्धा आनन्द का अशोष्य आकर है। श्रद्धा से एकात्मकता का उदय होता है । सारा द्वैध विलीन हो जाता है । श्रद्धापात्र कोई विरला साधक ही होता है।
जो स्थूल दुःख-दर्द को भुला दे वह श्रद्धा है
"सा का श्रद्धा न खलु जनयेद् विस्मृति स्थूलायाः ।२७ -- जब वह उद्रिक्त हो जाती है तो कोई वस्तु दुर्लभ नहीं रह जाती है । जिसे तकं द्वारा नहीं जाना जा सकता उसे श्रद्धा के द्वारा सहजतया प्राप्त कर लिया जाता है। श्रद्धा (भक्ति) के प्रादुर्भाव से समस्त सांसारिक बुभुक्षाएं निरस्त हो जाती
इसके अतिरिक्त हर्ष (१०) दृढ़ता (६२) उल्लास (९५) दुःख (६६) उत्साह (८८) आशा (५०) आदि के बिम्ब भी उपलब्ध हैं।
२. प्रज्ञा बिम्ब-दर्शन-ज्ञान से सम्बन्धित बिम्ब प्रज्ञा-बिम्ब कहा जाता है। अश्रुवीणा में अनेक स्थलों पर द्रव्य, संसार, पुद्गल, पाप-पुण्य, भाग्य आदि के बिम्ब प्राप्त होते हैं । संसार (६४,६५,६७) शब्द पुद्गलोत्थ हैं (३३,३४) अवगाह लक्षण वाला आकाश है (७७) पर्याय (६४) सत् (८८) एवं भाग्य (५६) आदि बिम्ब दृष्टव्य हैं।
इस प्रकार अश्रुवीणा में अनेक सुन्दर एवं मनोज्ञ बिम्बों का समायोजन हुआ
पादटिप्पण १. इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रोटेनिका १२.१०३ २. द पोयटिक इमेज पृ० १६ ३. जार्ज व्हैली, पोयटिक प्रोसेस पृ० १४५
तुलसी प्रज्ञा
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