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'खेदं स्वेदो बहिरपनयञ्जात आकस्मिकेन, प्रोल्लासेनाभ्युदयमयता दर्शनात् विश्वभर्तुः ।
कामं भ्रान्तां किमपि किमपि प्रस्मरन्तीं स्मरन्तीं, स्वस्थां चक्रे पुलकित तनुं चन्दनां स्मेरनेत्राम् ॥ किन्तु भगवान् आशापूर्ण किए बिना लौट गए- कैसी स्थिति हो गयी। हा हन्त ! नवयौवना तत्काल मूच्छित हो गयी । उसकी चेतना लोटी, लेकिन दुःख के अथाह सागर के साथ | वह चारों तरफ अपने पिपासित नयनों से श्रद्धास्पद को खोज रही थी । उसकी दृष्टि से करुणा और आशा झलक रही थी और उसका दिल टूट रहा था। १७
'दाता और ग्रहिता' का रमणीय बिम्ब द्रष्टव्य है
'हर्षातिरेक' से कांपती हुई चन्दना प्रभु को उड़द समर्पित कर रही है, भगवान् उसे ग्रहण कर रहे हैं
'पाणी दाव्याः प्रमद - विभव- प्रेरणात्कम्पमानौ, स्निग्धौ क्वापि व्यथितपृषता माषसूपं वहन्तौ । आदातुस्तौ दृढतमबलात् सुस्थिरौ सानुकम्पौ सद्योका हृदयसजलौ सूर्पमाषान् वहन्तौ ॥ आसूं – अनेक स्थलों पर आसुंओं के बिम्ब उपलब्ध होते हैं । अश्रुवीणा के कवि ने आसुंओं का मानवीकरण कर अपने विशाल हृदय का परिचय दिया है । जब निर्ग्रन्थ महावीर चन्दन बाला की इच्छा पूर्ण किए बिना लौटने लगते हैं तब चन्दना के हृदय की समस्त भावनाएं प्रभु को रोकने के लिए आसुंओं के रूप में यहां दस (२३-३२) श्लोकों में आसुंओं का चित्रण किया गया है जो
उमड़ पड़ीं । हृदयावर्जंक
है ।
आसूं विरहियों के मनोविनोद तथा उनके सुख-दुःख के सहायक हैं- ' लब्ध्वा नान्यो भवति शरणं तत्र यूयं सहायाः ।"
आसूं में अद्भुत शक्ति है, उसके प्रवाह में भगवान् महावीर भी निमज्जित हो जाते हैं
'मग्नाः सद्यो वहति विरलं तेऽपि युष्मत्प्रवाहे' | "
आसूं का सम्बन्ध हृदय से होता है, उसकी भाषा हृदय की भाषा होती है । इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के रूप-बिम्ब मिलते हैं । यथा रथिक (१४) सर्प और महावीर (१५) पैदल चलते महावीर और उनके सामने चंदना के आसूं (२५), तपकृश महावीर (६०) उड़द (६८) हाला (६५)
मेघ (११,७५) तारा (७६) सूर्य एवं घड़ा (७५) आदि ।
रसबिम्ब- रसोन्द्रिय अत्यल्प मात्रा में मिलता है ।
द्वारा ग्राह्य बिम्ब रस बिम्ब है । अश्रुवीणा में यह उड़द के स्वाद का बिम्ब उपलब्ध है । " गन्ध बिम्ब - घ्राणेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य बिम्ब को गन्ध बिम्ब या घ्राणज बिम्ब कहते हैं । अश्रुवीणा में यह एक स्थान पर वासन्तिक पुष्पों के सौरभ" के रूप में
खण्ड १८, अंक १ ( अप्रैल-जून, ६२ )
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