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'अश्रुवीणा' में बिम्ब योजना
0 डॉ० हरिशंकर पाण्डेय
(लेखक ने बिम्बानुभूति से तादात्म्य माना है किन्तु बिम्बयोजना गीतिकाव्य में तो मिथ्या मर्यादा का ही निर्माण करती है। उससे गीतिकार की निजता, संकेतों में बदल जाती है और सहृदय और स्रष्टा के बीच अन्तराल आ जाता है।
बीसवी सदी ने जीवन में एक विशेष प्रकार की जल्दबाजी और संक्षेप को बढ़ाबा दिया है। साहित्यक विधाओं में भी यह त्वरा और लाघव बढ़ा है । संभवत: इसी ने कवि को छन्द-प्रयोजना से विमुख बनाकर बिम्बयोजना में प्रवृत्त कर दिया लगता है ।
'अश्रुवीणा' युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की अनूठी कृति है। उसका प्रत्येक शब्द सजीव है। उसमें बिम्ब योजना की खोज करना तो गुड़ में मिठास खोजना जैसा है। फिर भी लेखक का प्रयास स्तुत्य है।-संपादक)
संस्कृत काव्य विधाओं में गीतिकाव्य का स्थान अन्यतम है । "विनाकृतं विरहित व्यवच्छिन्नं विशेषितम्" रूप मोक्तकीय परिभाषा से संबलित, कल्पना, भावना, संगीत, वेदना और अनुभूति से मिश्रित, गीतिकाव्य की महनीय परम्परा में अधिष्ठित अश्रुवीणा युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ की उत्कृष्ट रचना है । इसमें संसारानल से संतप्त सती चन्दनबाला की वेदना गीति कारूण्य पूर्ण भाषा में अणुरणित है।
बिम्ब, काव्य के प्राण तत्त्व होते हैं। प्रस्तुत संदर्भ में 'अश्रुवीणा' में प्रयुक्त रसात्मक एवं प्रभावात्मक बिम्बों का अनुशीलन अवधेय है। बिम्ब की परिभाषा
किसी पदार्थ का मनश्चित्र, मानसिक-प्रतिकृति, कल्पना एवं स्मृति में उपस्थित चित्र बिम्ब है । मानसिक पुननिर्माण को बिम्व कहते हैं । बिम्ब हृदय और मस्तिष्क की आंखों से देखी जानेवाली वस्तु है।' एक प्रख्यात विचारक के अनुसार 'काव्य बिम्ब शब्दात्मक ऐन्द्रिक-चित्र है, जो कुछ अंशों में रूपकात्मक होते हुए भी मानवीय भावों का अभिव्यंजक होता है । भाव और संस्कार अवचेतन मन में अवस्थित होते हैं उन्हीं की ऐन्द्रिक अभिव्यक्ति बिम्ब है । अप्राप्त को प्राप्त बना देना तथा अमूर्त विचार या भावना की मूर्त अभिव्यंजना बिम्ब है।'
कवि स्वयं दृष्ट एवं अनुभूत वस्तुओं को पाठकों तक बिम्ब के माध्यम से ही पहुंचाता है । अतएव अनुभूति की यथातथ्य अभिव्यक्ति बिम्ब है । 'करोलियन स्पसियन' खण्ड १८, अंक १ (अप्रैल-जून, ६२)
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