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________________ उत्तराध्ययन के दो संदर्भ १. करकंडू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो । नमी राया विदेहेसु गंधारेसु य न गई ||४५|| एए नरिंदवसभा निक्खता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं सामण्णे पज्जुवडिया ||४६|| सोवीररायवसभो 'चेच्चा रज्जं' मुणी चरे । उद्दायणो पटवइओ पत्तो गड़मणुत्तरं ॥४६॥ - अट्ठारसमं अज्झयणं (संजइज्जं ) २. चंपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महत्वणो ||१|| निग्गंथे पावयणे सावए से विकोविए । पोएण ववहरते पिहुंड पिहुंडे ववहरंतस्स वाणिओ तं ससत्तं अह पालियस्य धरणी समुहंमि पसवई । नगरमागए ||२|| देइ घूयरं । इगिज्झ सदेसमह पत्थिओ ||३|| अह 'दारए तहिं' जाए समुद्दपालि त्ति नामए ||४|| - एगविंस इमं अज्झयणं ( समुद्दपालीय) उक्त दोनों प्रसंग कलिंग और कलिंग के बन्दरगाह पिहुंडनगर का उल्लेख करते हैं । प्रसंग क्रमांक - १ में बताया गया है कि जब कलिंग में करकंडू का शासन था तो पांचाल में दुर्मुख, विदेह में निमि और गांधार में नग्नजित् शासक थे और इन चारों राज्यों में जिनशासन था । ऐतरेय ब्राह्मण ( ७.३४ ) के हवाले से यह संदर्भ महाभारत पूर्व का माना जा सकता है । दूसरा प्रसंग पिहुंड नगर में भगवान् महावीर के भ्रमण का वृत्तान्त देता है । यह प्रसंग आवश्यक सूत्र के विवरण अनुसार - भगवान् महावीर के तोसली और मोसली जाने से तुलनीय है । प्रो० के०सी० जैन के अनुसार भगवान् महावीर वलूयगाम, सुभोम, सुचेत्ता, मलय जहां उन्हें शारीरिक यातनाएं भी सहनी पड़ी । तोसली - मोसली जाने पूर्व हथिसिस स्थानों पर गये और ये सभी स्थान कोशल (कलिंग के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र) में स्थित रहे हो सकते हैं। वर्तमान सोनपुर (बलंगिर जिला ) और मलयगिरि (पल्लहर के पास ) दो स्थल क्रमशः सुमोम और मलय से पहचाने जा सकते हैं । 'हथीसिस' राजा खारवेल की पट्टराणी ललाक का पीहर हो सकता है जो बहुत बाद में जैन धर्मी बना होगा । — परमेश्वर सोलंकी तुलसी प्रज्ञा ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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