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________________ सप्तर्षियों से कालगणनाएं [] डॉ० परमेश्वर सोलंकी सप्तर्षि संवत् कश्मीर के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र चेनाव से पश्चिम और जमुना से पूर्व में प्रचलित है ।' अलबरूनी के समय वह मुल्तान और सिंघ में भी प्रयुक्त होता था । " उसने शक काल ६५१ में सप्तर्षियों के अनुराधा नक्षत्र में रहते ७७ वर्ष बीतने की बात लिखी है ।' कर्निघम को ए. डी. १८५६ में कांगड़ा के ब्राह्मणों ने लिखा था कि कलियुग के आरंभ में सप्तर्षि मघा नक्षत्र में ७५ वर्ष बीता चुके थे, इसलिये कलियुगाब्द और सप्तर्षि - संवत्सर ( पहाड़ी संवत्सर) में २५ वर्षों का अन्तर है । अर्थात् ए. डी. १८८५ में कलियुग ४९६० वर्ष और बृहस्पति- संवत्सर का ३५वां वर्ष है जो कलियुग से २५ वर्ष पीछे है ।" वराहमिहिर ने अपनी बृहत्संहिता ( १३.१,२,३ ) में इस संबंध में वृद्ध गर्ग का मत उद्धृत किया है— सैकावलीव राजति ससितोत्पलमालिनी सहासेव । नाथवतीव च दिग्यैः कौबेरी सप्तभि मुनिभिः ॥ १॥ ध्रुवनायकोपदेशान्नरिनतवोत्तरा भ्रमद्भिश्च । येश्वारमहं तेषां कथयिष्ये वृद्ध गर्गमतात् ||२|| आसन्मघासु मुनयः शासति पृथ्वी युधिष्ठिरे नृपतौ । षद्विपंचयुतः शककालस्तस्य राज्ञश्च ॥३॥ कि सप्तर्षि उत्तर दिशा में भ्रमण कर रहे थे तो मघा नक्षत्र में थे । तब से २५२६ वर्ष बीत गए तो काल शुरू हुआ ।" कनिंघम को कांगड़ा के ब्राह्मणों से एक और द्वापर की समाप्ति तक सप्तर्षि मण्डल ने तीन पर्याय पूरे में २५ वर्ष का भोग शेष था । यह पर्याय पाजिटर की होता है Jain Education International खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ९२ ) और जब महाराजा युधिष्ठिर थे उस राजा (देवळ) का शक सप्तर्षयस्तु तिष्ठन्ति पर्यायेण शतं शतम् । सप्तर्षीणां युगं तद् दिव्यया संख्ययास्मृतम् ॥ मासा दिव्याः स्मृता षट्च दिव्याब्दानि तु सप्त हि । तेभ्यः प्रवर्तते कालो दिव्यः सप्तर्षीभिस्तु वं ॥ प्रश्न का उत्तर मिला कि किये थे किन्तु मघा नक्षत्र व्याख्यानुसार २७०० वर्षों का For Private & Personal Use Only १७६ www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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