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________________ छपी है कि आचार्य पादलिप्त ने, जो आचार्य सिद्धसेन के समकालिक हैं, उड़ीसा के किसी मरुण्ड राजा का मस्तिष्करोग ठीक किया। लेख क्रमांक ११-१४ में उल्लिखित श्री उद्योत केसरीदेव संभवतः रक्तबाहवंश के बाद सत्तासीन हुए वंश के राजा हैं क्योंकि आर्यसंघ प्रतिबद्ध गहकुल के देशीगण आचार्य कुलचन्द्र शिष्य शुभचन्द्र, राजा मुंज के भाई बताए गए हैं। वे पद्मनंदि (१०१६-११३६ ईसवी) के गुरू और "ज्ञानार्णव" के रचयिता हैं। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष (भाग ४ पृ० ४१) में इनका समय १००३-१०६८ ईसवी वताया गया है। सन् १९४७ में शिशुपालगढ़ (प्राचीन कलिंगनगरी) की खोदाई हुई तो वहां एक मृण्मय फलक पर 'असत्रस पसनकस'-अमात्य प्रसनक की सील मिली थी उसे उपर्युक्त शिलालेख क्रमांक ४ से १० तक से संबंधित माना जा सकता है। संभवतः यह खारवेल वंश के काफी बाद का इतिहास है। डॉ० कृष्ण स्वामी ने दो तामिल ग्रंथ—'शिलपथीकारम्' और 'मणि मेखलाई' के आधार पर अपने ग्रन्थ 'एंशियट इण्डिया एण्ड साऊथ इण्डियन हिस्ट्री एण्ड कलचर" (वोल्यूम १ पृ ४०१-२) में लिखा है कि उत्कल का का साम्राज्य दो भागों में बंट गया था और कपिलपुर और सिंहपुर उसकी दो राजधानियां थीं। डा० कृष्ण स्वामी की कहानी का एक आधार दाठा धातुवंश के बुद्धदंत उपाख्यान में दीख पड़ता है। उसके अनुसार बुद्ध के दांत के लिये युद्ध हुआ और उत्कल दो राज्यों में बंट गया। लेख क्रमांक एक से तीन स्वयं खारवेल के जीवन काल में ही लिखे गये हो सकते हैं। पहला लेख कलिंग श्रमणों के लिए खारवेल की महारानी द्वारा गुंफादान से संबंधित है । उसमें महारानी लालाक ने अपने पितामह हंसप्रद्योत और पिता हथी का नाम लिखा है। दूसरे लेख में खारवेल के पिता, पितामह, और प्रपितामह के नाम क्रमशः कुडेपसिरि, महामेघवाहन और ऐरस लिखे हैं। तीसरे शिलालेख में राजकुमार वासुक का नाम है। खारवेल-प्रशस्ति की दशवीं पंक्ति में दशवें वर्ष का कार्य-विवरण इस प्रकार दिया है--''दसमे च वसे कलिंगराजवसाने ततिययुग सगावसाने कलिंग युवराजनं वासकारं कारापयति सतसहसेहि"--अर्थात् दशवें वर्ष जब कलिंगराज वंश (चेदि राजवंश) के तीन राजाओं का काल पूरा हुआ और सगावसान (कुडेपसिरि की मृत्यु हुई) हुआ तो समारोहपूर्वक वासुक को युवराज बनाया गया। इस प्रकार मांचीपुरी गुफा के ये तीन लेख जिनके साथ कलिंग जिन पूजन में कुडेपसिरि और उनका पौत्र वासुक साथ-साथ खड़े चित्रित हैं, निस्संदेह खारवेल-प्रशस्ति से पूर्व के हैं । -परमेश्वर सोलंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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