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________________ उत्पन्न हुई अत: उनका नाम सुमति रखा गया। माता में क्या निर्णायक बुद्धि उत्पन्न हुई इस विषय में चूर्णिकार और टीकाकार ने एक घटना का भी उल्लेख किया है । जिनकी मति अच्छी है वह सुमति है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है ।११ ६. पद्मप्रभ- भगवान् पद्मप्रभ जब गर्भ में आये तब उनकी माता को कमल की शय्या पर सोने का दोहद हुआ। किसी देव ने कमल की शय्या का निर्माण कर उनका दोहद पूर्ण किया। भगवान् का वर्ण भी पद्म जैसा था अतः उनका नाम पद्मप्रभ रखा गया। पद्म की तरह जिनकी प्रभा है वह पद्मप्रभ है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है।" ७. सुपार्श्व- भगवान् सुपार्श्व जब गर्भ में आए तब उनकी माता के दोनों पाश्वं (काख के नीचे वाला भाग) सुन्दर हो गए अत: उनका नाम सुपार्श्व रखा गया ।" जिसके पार्श्व सुन्दर है वह सुपार्श्व है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है ।५ ८. चंद्रप्रभ-भगवान् चंद्रप्रभ जब गर्भ में आये तब उनकी माता को चंद्रपान का दोहद हुआ तथा उनका वर्ण भी चंद्रमा जैसा था अतः उनका नाम 'चंद्रप्रभ' रखा गया। जिनकी प्रभा चंद्रमा की तरह है वह चंद्रप्रभ है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है । ६. सुविधि-भगवान् सुविधि जब गर्भ में आये तब से उनकी माता सभी कार्यों में कुशलता प्राप्त करने लगी अतः उनका नाम सुविधि रखा गया। जो सब कार्यो में कुशल है वह सुविधि है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है । . १०. शीतल-भगवान् शीतल के पिता पित्त-दाह से पीड़ित थे। औषधोपचार से भी वह शान्त नहीं हुआ। जब से भगवान् शीतल माता के गर्भ में आए तब से उनका पित्त-दाह रोग शांत हो गया अतः उनका नाम शीतल रखा गया ।२० जो सभी प्राणियों के संताप को दूर करने वाला तथा आनंद करने वाला है वह शीतल है-यह व्युत्पत्तिलक्ष्य अर्थ है ।" ११. श्रेयांस-भगवान् श्रेयांस के पिता के पास परम्परागत एक देव-परिगृहीत शय्या थी। उसकी पूजा की जाती थी। जो उस पर बैठता देवता उसे कष्ट देता था। जब भगवान् श्रेयांस गर्भ में आए तब उनकी माता को उस शय्या पर बैठने का दोहद हुआ। वह उस पर बैठ गई । तीर्थंकर को गर्भस्थ जानकर देव ने उसे कष्ट नहीं दिया। इस प्रकार गर्भ के प्रभाव से माता की सुरक्षा हुई । अतः उसने अपने पुत्र का नाम श्रेयांस रखा । ___ जो सब प्राणियों का हित करने वाला है वह श्रेयांस है-यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ . १२. वासुपूज्य-टीकाकार के अनुसार वासुपूज्य नाम रखने के दो कारण हैं(१) भगवान् जब गर्भ में आए तब इंद्र बार-बार उनकी माता की पूजा करने लगा अतः उनका नाम 'वासुपूज्य' रखा गया। (२) भगवान् वासुपूज्य के गर्भ में आने पर २२० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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