SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी काव्य में पंच महावत O डॉ० देवदत्त शर्मा जैनाचार-शास्त्रों में पांच महावतों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें से प्रथम है, अहिंसा । प्राणीमात्र के प्रति जो पूर्ण संयम है, वस्तुतः सही अर्थों में वही अहिंसा है । अहिंसक आचार एवं विचार से ही मानव का उत्थान होता है । अतः आचार्यश्री तुलसी ने अहिंसा के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है साधना का पथ अहिंसा महा-अणुव्रत रूप है, मनोवाक्कायिक नियन्त्रण शांति दान्ति स्वरूप है, 'संयमः खलु जीवनम्' ही अमल जिसका घोष है, प्रमुखता पुरुषार्थ की यह आत्म-बल को पोष है । (भरत मुक्ति, पृ० २०३) डॉ० छैल बिहारी गुप्त ने तो अहिंसा को धर्म के कारण के साथ-साथ उसे जीव को सुरक्षा प्रदान करने वाला अमोघशास्त्र भी कहा है त्रस्त जीवों की सुरक्षा काम श्रेष्ठ गुण का है यही आगार आदि कारण धर्म का साकार । (तीर्थंकर महावीर, पृ० २७०) हिंसा वृत्ति को साधन के रूप में ग्रहण करने से मानवीयता का संपोषण कदापि संभव नहीं हो सकता। मानवता के सतत्त् एवं सुष्ठु विकास के लिए अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोपरि साधन है । इसी से विश्व में सुख-शान्ति स्थापित हो सकती है । इन्हीं भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए धन्यकुमार जैन ने 'परम ज्योति महावीर' महाकाव्य में कहा है सुख शांति विश्व में ला सकता, है मात्र अहिंसा धर्म स्वयं । औ, पूर्ण अहिंसा पालन से, तो क्षय हो सकते कर्म स्वयं ॥ (परमज्योति महावीर, पृ० ५३८) 'पाश्र्वनाथ' के प्रणेता चन्दनमुनि ने अहिंसा की महत्ता को प्रस्थापित करते हुए अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट किए हैंखण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, १२) १९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy