SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की उपयोगिता का अनुमान पूर्व संस्करणों की १९५०० प्रतियों की हाथोंहाथ बिक्री से ही लगाया जा सकता है। -नेमीचन्द जैन ५. भाग्य चक्र । लेखक-आनंद प्रकाश त्रिपाठी "रत्नेश'। मूल्य १० रूपये। पृष्ठ-१७४ । प्रथम संस्करण । प्रकाशक-आदर्श साहित्य संघ, चूरू।। जीवन चक्र नाना परिस्थितियों से उलटा सीधा चलता है उसमें मुक्त और भुक्त भाव क्षणों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जो अविस्मरणीय होते हैं, तब परिस्थितिजन्य घटनायं कल्पना के दरख्त पर चढकर सुखद और मनोरंजक बन जाती हैं। आज के व्यस्त जीवन में कहानी ही ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी आसानी से दी जा सकती है। यह विधा हमारे लिए नई नहीं है। दादी-नानी की कहानी तो अति प्राचीन काल से ही प्रचलित रही हैं। साहित्यक रूप में पंचतंत्र और जातक ग्रंथों में छोटी-छोटी शिक्षाप्रद कहानियां भरी पड़ी हैं। "भाग्यचक्र" में रत्नेश की २१ कहानियों का संग्रह है, अधिकांश कहानियों में किसी न किसी समस्या को लेकर उसका समाधान प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है। "प्रतिशोध" कहानी समस्या मूलक कहानी है। कहानीकार द्वारा इसमें यह बताने का प्रयास किया गया है कि प्रतिशोध के जहर को प्रतिशोध से समाप्त नहीं किया जा सकता है । कहानी को पढ़कर मुझे सर्वेश्वरदयाल सक्सैना की ये पंक्तियां याद आ रही हैं जहरीले आदमी से छुटकारे के लिए फिर तुम क्या करोगे? पहली बात उससे मत डरो खुद में आत्मविश्वास पैदा करो सबके साथ एक समुद्र बन उभरो, उभरो। 'जेब कतरे से' कहानी सामाजिक यथार्थ का चित्रण करती है। वीरू नामक छात्र परिस्थितियों के वशीभूत होकर अपराधी (जेब कतरा) बन जाता है। उस अपराधी के मन में भी ईमानदारी का भाव भरते हुए पुरुषार्थ की प्रेरणा दी जाती है और अन्त में वह अपनी अपराधी वृत्ति को त्याग देता है। कहानीकार ने सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों को गहराई तक कुरेदा है। नारी मन के भावों के चतुर चितेरे 'रत्नेश' की 'मानसी' और 'संयोग' ऐसी ही रचनाएं हैं। 'संयोग' में तो समसामयिक समस्याओं को दर्शाते हुए वर्तमान उद्देश्यविहीन शिक्षा पर भी व्यंग्य किया गया है। - 'जेलर' कहानी का प्रारम्भिक अंश बड़ा ही प्रभावशाली है। आरम्भिक पंक्तियों को पढ़कर प्रसाद की 'आकाशदीप' कहानी स्मरण हो आती है। सुधारवादी लेखक ने साम्प्रदायिक सद्भाव पर भी बल दिया है । बदलते रिश्ते और श्रद्धांजलि इसी तरह की कहानियां हैं। सर्वांश में 'भाग्यचक्र' कहानीकार की साहित्यिक प्रतिभा का परिचय देती है। खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ६१) १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524568
Book TitleTulsi Prajna 1991 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy