________________
वह उपन्यास जहां वितृष्णा उपजाता है वहां विमलदा का यह उपन्यास आगे के लिए सावचेती जगाता है। दरअसल मानव मन के चितरे विमल दा की इस कृति में प्रकारान्तर से बहुत कुछ कह दिया गया है। मानवता, भ्रातृत्व, देश की अखंडता, स्वतंत्रता और सत्ता, स्वार्थ और परहित-सभी पर उन्होंने सटीक टिप्पणियां की हैं । बालमन और वृद्ध का मानसिक संघर्ष यहां पराकाष्ठा पर चित्रित हुआ है। पुस्तक की प्रस्तुति 'राज्यपाल एण्ड सन्स' ने अपने गौरव के अनुकूल की है।
-परमेश्वर सोलंकी ४. ज्ञान किरण-संकलन कर्ता-साध्वी श्री राजीमतीजी । प्रकाशक-प्रज्ञा प्रकाशन, २०५४, हल्दियों का रास्ता, जोहरी बाजार, जयपुर। नवम् संस्करण-- १९९१ । मूल्य रु० १५/- मात्र । पृष्ट ३२४ ।
भगवान् महावीर ने मुक्ति के दो उपाय बताए हैं-विद्या और चारित्र (ज्ञान और आचरण)। ज्ञान प्रकाश करता है तथा सांस्कृतिक परम्पराओं, सत्य की ऊंचाइयों एवम् स्वस्थ मानसिकता तक हमें ले जाता है। ज्ञान की अभ्यास भूमिका चारित्र है जिसके द्वारा मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा कुविचार, भय, स्पर्धा, चिन्ता और गलत दिनचर्या से मुक्ति मिलती है।
सन्तों ने, सतियों ने जनता को चरित्रनिष्ठ व सुसंस्कारित बनाने के लिए अनादि काल से प्रयास किए हैं। तेरापंथ धर्मसंघ की विदुषी साध्वी राजीमती ने 'ज्ञान किरण' में जनोपयोगी सामग्री का संकलन करके जिज्ञासु व सन्मार्ग के पथिक साधकों पर महान् उपकार किया है। इसमें दैनिक उपासना, जैन संस्कार, तात्त्विक विचार व स्वाध्याय योग्य रमणीय रचनाओं का सुन्दर समावेश है। मानव के सर्वांगीण विकास के लिए इन्हीं आध्यात्मिक मूल्यों का योगदान अपेक्षित है। भौतिकवादी युग की जटिलताओं से संत्रस्त मानव मन अध्यात्म की डोर से बंधकर जब योग, ध्यान, साधना के क्षेत्र में उतरता है तब उसे आत्मानुभूति होती है तथा जीवन की यथार्थता का बोध होता है।
"ज्ञान किरण" सात भागों में विभाजित है। १ प्रेक्षा ध्यान साधना २ जप साधना ३ श्रावक साधना ४ जैन धर्म परिचय ५ तेरापंथ परिचय ६ स्वध्याय साधना ७ स्तुति साधना। इनमें प्रेक्षा ध्यान और जप साधना, स्वस्थ जीवन के लिए उपयोगी सूत्र, उपयोगी जप मन्त्र, श्रावक कैसा हो ? जैन धर्म तीर्थंकर परम्परा, तेरापन्थ संघ की परम्परा, सम्यकत्व का विवेचन, विशेष पर्व, तपस्या का फल, कर्मफल प्रश्नोत्तरी आदि सामग्री संक्षिप्त एवम् सरल भाषा में दी गई है।
कर्म फल का सिद्धान्त तो एक विशुद्ध वैज्ञानिक सिद्धान्त है। स्तुति साधना विभाग के गीतों का संकलन अत्यन्त मधुर, हृदयस्पर्शी एवम् सरल भाषा में तत्त्व विवेचन करने वाला है। कोई भी गायक सहज आनन्द की अनुभूति किए बिना नहीं रह सकता । इस पुस्तक में श्रावक-प्रतिक्रमण, पंच पद वन्दना एवम् भत्तामर स्तोत्र आदि अर्थ सहित दिए गए हैं। श्रावकों के व्रतों की सूची भी अंकित की गई है । पुस्तक
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org