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फिर पूछा गया -प्रभो ! वह किन-किन दो लेश्याओं में प्राप्त होती है ? भगवान ने बताया-गोतम ! कषायकुशील निर्ग्रन्थता छहों लेश्याओं में प्राप्त होती है । कृष्ण लेश्या में यावत् शुक्ल लेश्या में।'
. कषायकुशील निर्गन्थता-साधुता का छहों लेश्यओं में प्राप्त होना यहां स्पष्टतः प्रतिपादित है फिर यह कैसे माना जा सकता है कि साधु में सिर्फ तीन शुभ भाव लेश्याएं ही होती हैं, छहों लेश्याएं नहीं ? उसी पंचम अंग सूत्र भगवती के पच्चीसम शतक के सप्तम उद्देशक में संयत-साधु के संबंध में जिज्ञासा करते हुए गणधर गौतम पूछते हैं--प्रभो ! संयत कितने प्रकार के होते हैं ? भगवान् ने बताया—गौतम ! संयत पांच प्रकार के होते हैं। वे पांच प्रकार ये हैं-सामायक संयत, छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धि संयत, सूक्ष्मसंपराय संयत और यथाख्यात संयत । पुनः क्रमशः सामायकादि इन पांच संयतों में लेश्याओं की प्राप्ति के बारे में जिज्ञासा करते हुए गौतम स्वामी ने पूछा-प्रभो ! यह सामायक संयत सलेश्यी में होता है या अलेश्यी में ? भगवान् ने बताया-गौतम ! यह सलेश्यी में ही होता है। फिर जिज्ञासा की गयी-प्रभो ! यह सामायक संयत कौन-कौन-सी लेश्याओं में होता है ? भगवान् ने बताया---यह कषायकुशील निर्ग्रन्थ की तरह कृष्णादि छहों लेश्याओं में प्राप्त होता है।
इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत के लिए जिज्ञासा की गई तो भगवान् ने बताया—छेदोपस्थापनीय संयत भी कषायकुशील निर्ग्रन्थ की तरह छहों लेश्याओं में प्राप्त होता है। भगवती सूत्र के इस निरूपण में सामायक और छेदोपस्थापनीय संयत में कृष्णादि छहों लेश्याओं का होना स्पष्टत: प्रतिपादित है। भगवती सूत्र के आठवें शतक के दूसरे उद्देश्य में भी कृष्ण, नील, कापोत लेश्यी में चार ज्ञान की भजना बतायी गयी है। ज्ञात रहे मनः पर्यव ज्ञान साधु के सिवा अन्य किसी में भी प्राप्त नहीं होता। मनःपर्यवज्ञानी में कृष्ण लेश्या का भी होना यहां प्रतिपादित है। इससे साधु में कृष्ण लेश्या का होना स्वतः सिद्ध हो जाता है।
विशाल आगम साहित्य में से और भी वे अनेक स्थल प्रस्तुत किये जा सकते हैं जो संयमधारी, साधु में स्पष्टतः छव लेश्याओं का प्रतिपादन करते हैं। यहां उन सभी का प्रस्तुतीकरण अपेक्षित नहीं लगता । फिर भी द्रव्यानुयोगप्रधान आगमसूत्र श्री पन्नवणा का एक पाठ तथा आचार्य श्री मलयगिरि-कृत उसकी टीका यहां और उद्धृत की जा रही है
प्रज्ञापना सूत्र के सतरवें पद का नाम है-लेश्या पद । इसमें छवों लेश्याओं का विस्तृत वर्णन किया गया है । उसके तृतीय उद्देशक में गौतम स्वामी ने एक जिज्ञासा प्रस्तुत की है-प्रभो ! कृष्ण लेश्यी जीव में कितने ज्ञान प्राप्त हो सकते हैं ? भगवान् ने बतलाया--गौतम ! कृष्ण लेश्यी जीव में दो, तीन या चार ज्ञान भी प्राप्त हो सकते हैं । उसमें मति, श्रुत ये दो ज्ञान प्राप्त हो सकते हैं। उसमें मति, श्रुत और अवधि या मति, श्रुत और मनः पर्यव ये तीन ज्ञान भी प्राप्त हो सकते हैं । उसमें मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव ये चार ज्ञान भी प्राप्त हो सकते हैं । उसमें केवलज्ञान प्राप्त नहीं होता। वह सिर्फ शुक्ल लेश्यी या अलेश्यी में ही प्राप्त होता है।" ___ इस पाठ की टीका करते हुये आचार्य मलयगिरि-स्वयं एक वितर्क उपस्थित करते
तुलसी प्रज्ञा
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