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________________ ५६. चार भूमियां चार गतियां ६०. त्रिरत्न त्रिरत्न ६१ चतुश्शरण त्रिशरण जैन और बौद्ध विनयों की यह एक सामान्य तुलना की छोटी-सी तालिका है। प्रत्येक शीर्षक को स्पष्ट करने के लिए यहां मात्र इतना ही कथ्य है कि जैन और बौद्ध विनय एक ही संस्कृति से संबद्ध होने के कारण एक दूसरे से अधिक दूर नहीं है। उनमें आचार-विचार गत पर्याप्त समानताएं हैं। यह समानत। स्थविरवादी विनय में अधिक दृष्टव्य है । तान्त्रिकता के अंश को छोड़ दिया जाए तो महायानी परम्परा में भी वह रूप देखा जा सकता है। संदर्भ ग्रन्य-सूची १. Jainism in Buddhist Literature/Dr. Bhagchandra Jain, Nagpur 1972 २. मज्झिम निकाय, P.T.S. लंदन, नागरी संस्करण, नालन्दा, १९५६ ३. विनय पिटक, P.T.S. London, १८७६; नागरी संस्करण, नालन्दा, १९५८ ४. दीघनिकाय, P.T.S. London, १८६०; नालन्दा संस्करण, १९५६ ५. अंगसुत्ताणि, जैन विश्व भारती, लाडनूं ६. रत्नकरण्डश्रावकाचार, वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, १९७२ ७. विसुद्धि मग्ग, सं० द्वारिकादास शास्त्री, वाराणसी, १९७६ ८. ज्ञानावि, रायचन्द्र ग्रन्थमाला, बम्बई, १९०७ ६. बोधिचर्यावतार, सं० शान्तिभिक्षशास्त्री, लखनऊ १०. ठाणांगसूत्र, आगमोदय समिति, बम्बई-१९१८-२० ११. तत्त्वार्थ राजवातिक, सं० महेन्द्रकुमार वाराणसी, १९४४ १२. भगवती आराधना, बम्बई, १९६६ १३. उत्तराध्ययन-सं० आ० तुलसी, कलकत्ता, १९६७ १४. भगवती सूत्र, अहमदाबाद, १६२२-३१ १५. आचारांग सूत्र,लुधियाना, १९६३-६४ १६. मिलिन्दपञ्हो, वाराणसी, १६३७ १७. मूलाचार, बम्बई, वि० सं० १९७७ १८. योगसार, दिल्ली, १९७० १६. अष्टपाहुड, सं० पं० पन्नालाल जैन, १९७८ २०. अनगार धर्मामृत, बम्बई, १९१८ २१. अंगुत्तर निकाय, P.T.S. London, १८८५-१६००; नागरी संस्करण, नालन्दा, १९५६ २२. जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास-डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर, नागपुर विद्यापीठ, १९७७ खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ११) १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524568
Book TitleTulsi Prajna 1991 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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