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________________ ३५. पंडक आदि को दीक्षा के अयोग्य पंडक आदि को उपसंपदा के अयोग्य माना माना गया। गया। ३६. आठवर्ष से कम अवस्था वाले को दस वर्ष से कम अवस्था वाले को उपसंपदा - प्रव्रज्या का निषेध का निषेध ३७. प्रव्रज्या के लिए माता-पिता की यहां भी अनुज्ञा अनिवार्य है। अनुज्ञा अनिवार्य है । ३८. प्रायश्चित्त स्वरूप दण्ड-व्यवस्था । प्रायश्चित्त स्वरूप दण्ड व्यवस्था ३६. प्रायश्चित्त प्रवारणा ४०. गणी की योग्यताएं-आचार, महावग्ग में भिक्षु की योग्यताएं-बहुश्रुत, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, मति, आगतागमों, धम्मधरो, विनयधरो, मातिकाप्रयोग, संघपरिज्ञा । ये अनेक धरो, पण्डितो, व्यत्तो, मेधावी, लज्जी, प्रकार से वर्गीकृत है कुक्कुच्चको, सिखाकामो [आयारदसाओ] ४१. द्वादशानुप्रेक्षा दस अनुस्मृतियों ३२. चार भावनाएं चार ब्रह्मविहार ४३. मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, अविरति अश्रद्धा, आनस, प्रमाद, विक्षेप, सम्मोह ये और योग बन्ध के कारण पांच इन्द्रियां कर्माश्रव के कारण ४४. सम्यक्त्व, व्रतस्थापन, अप्रमाद, पांच बल-श्रद्धा, अनालस, अप्रमाद, अविक्षेप, उपशान्तमोह ऐवं क्षीणमोह संपन्न और अमोह संपन्न ४५. अप्रमाद, धर्मानुप्रेक्षा, वीर्य, प्रमोद, सप्त बोध्यंग-स्मृति, धर्म-विचय, वीर्य , गुप्ति, ध्यान एवं माध्यस्थ भाव युक्त प्रीति, प्रश्रब्धि, समाधि उपेक्षायुक्त ४६. रत्नत्रय आष्टांगिक मार्ग ४७. कर्म उपशम, कर्मक्षय कर्मप्रहाण, कर्मसमुच्छेद ४८. शुभध्यान में बाधक स्थलों का त्याग कसिण की खोज में कतिपय विहारों का त्याग ४६. सम्यग्दर्शन बोधिचित्त ५०. सम्यग्ज्ञान प्रज्ञा ५१. सम्यक् चारित्र शील और समाधि ५३. भेदविज्ञान धर्मप्रविचय ५३. पारमाथिकनय और पारमार्थिक सत्य और सांवृतिक सत्य व्यावहारिक नय ५४. आश्रव और संवर-निर्जरा आश्रव और संवर-निर्जरा ५५. आत्मवाद पुद्गलवाद संप्रदाय ५६. गुणस्थान भूमि ५७. आत्मा चित्त ५८. कर्म और कषाय कर्म और चैतसिक भाव १२८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524568
Book TitleTulsi Prajna 1991 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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