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________________ किसी क्षेत्र विशेष में सीमित नहीं किया जा सकता । क्षेत्र दर्शन का हो या अध्यात्म का,, शरीरविज्ञान का हो या मनोविज्ञान का, सर्वत्र चित्त और मन के अन्तर की स्पष्टता आवश्यक है | चेतना आवेष्टित यह मानव-शरीर अनेक रहस्यों से पूरित है । मन की शक्ति क्या है ? मन का कायाकल्प कैसे ? मन की शान्ति कब ? चित्त क्या है ? अतीन्द्रिय चेतना कब और कैसे ? चित्तसमाधि के सूत्र क्या है ? चित्तवृत्तियों की अनेकरूपता मन को नए-नए रूप देती हैं अथवा मन की स्थिरता से चित्त का निरोध होता है ? इस प्रकार के चिन्तन- मन्थन से सर्जित प्रश्नों का सहज समाधान इसमें उपलब्ध है । प्रायः विद्वानों ने चित्त और मन को वैज्ञानिक व्याख्या के जाल में उलझा दिया है किन्तु युवाचार्य महाप्रज्ञ ने इनका सहज चित्रण कर जनसाधारण के लिए उसे बोधगम्य बनाया है । अब तक मनोविज्ञान के प्रतीक रूप में फ्रायड और युंग जाने जाते थे किन्तु अब एक मनोवैज्ञानिक के रूप में महाप्रज्ञ इस क्षेत्र में चित्त और मन में अन्तर करते हुए कहते हैं कि चित्त हमारे अस्तित्व को दर्शाता है तो मन हमारी प्रवृत्ति को । चित्त में अनुभूति और मन में संकल्प-विकल्प की प्रवृत्ति प्रधान है । मन की चंचलता के बारे में आम धारणा से अलग उनका चिन्तन है कि चेतना के प्रवाह से ही मन चंचल होता है । अजमेर विश्वविद्यालय के बी० ए० तृतीय वर्ष जीवन-विज्ञान और जैन विद्या विषय के एक प्रश्न पत्र के अन्तर्गत इस पुस्तक का चयन इसकी महत्ता एवं उपयोगिता को दर्शाता है । एक पंक्ति में इस पुस्तक के बारे में यह कथ्य है कि यह एक योगी की सतत साधना से निष्कर्षित मूल्यों का सार है । -आनन्द प्रकाश त्रिपाठी 'रत्नेश' ४. मेह सूं पेल्यां - रचनाकार : श्याम महर्षि । संस्करण : प्रथम, १६६१ मूल्य : ५०रु० /- | प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ ( राज० ) कवि स्वभावतः दार्शनिक होता है । वह चारों ओर घटित होनेवाले वातावरण को निरपेक्ष भाव से देखता है । कवि श्याम महर्षि के कलेजे में "नूत्योड़ी पीड़" है । मिल्टन के शब्दों में उनकी कविता " a spontaneous outburst of powerful feelings" है । ८० विभिन्न विषयों पर उन्होंने अपनी "टीप" प्रस्तुत की है । "कविता" शीर्षक कृति में वे कहते हैं - "कविता / नींद री गोली नीं / बा है गोली बन्दूक री / कविता म्हारे मन री खुराक है / पांव रो पड़ाव है / म्हारी कविता / कविता मिनख री जबान / अर मन री पुकार है / कविता अरे करेली पिछाण / भूख अर रोटी री / कविता कवि की छाया है ।" महर्षिजी की कविताएं दृश्यावलियां ( Imagery ) प्रस्तुत करती हैं- "म्हारो बस घर ई है / होवण ने घर मांय सोक्यूं / पण / पेंडे में पाणी / अर चूल्हे में लकड़ी / होवण री १०२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524567
Book TitleTulsi Prajna 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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