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________________ पुरुष चरित्र आदि ग्रन्थों के उल्लेखों से प्रतीत होता है कि इसके कम-से-कम कुछ अंशों के व्याख्याता महावीर रहे हैं । किंतु परिवर्तन एवं परिवर्धन का क्रम महावीर निर्वाण से प्रारम्भ होकर वलभी वाचना के समय तक चलता रहा। रचनाकाल उत्तराध्ययन का उल्लेख दिगम्बर ग्रंथों में आदर के साथ उल्लिखित है। इससे स्पष्ट है कि संघभेद होने से पूर्व ही यह एक साथ ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था । अन्यथा दिगम्बर परम्परा में इसका उल्लेख नहीं मिलता। ___शांत्याचार्य के अनुसार दशवकालिक की रचना के बाद यह दशवकालिक के बाद पढ़ा जाने लगा। इस बात से स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन की रचना दशवकालिक से पूर्व हो चुकी थी। दशवकालिक के कर्ता शय्यंभव सूरि हैं जिनका समय वीर निर्वाण के ७५ वर्ष बाद माना जाता है। इस प्रकार उत्तराध्ययन की प्राचीनता एक ओर तो महावीर निर्वाण काल तक जा पहुंचती है तो दूसरी ओर ऐसे भी उल्लेख हैं जिससे उत्तराध्ययन के अध्ययनों की परवर्तिता सिद्ध होती है । इस सूत्र में वर्णित जातिवाद, दासप्रथा, यज्ञ एवं तीर्थस्थान आदि का वर्णन प्राचीनता के द्योतक हैं। अध्ययन एवं विषयवस्तु उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययन हैं तथा १६३८ श्लोक हैं। इसके प्रत्येक अध्ययन अपने आप में पूरे हैं और उनमें आपस में कोई सम्बन्ध परिलक्षित नहीं होता। समवायांग में जिन ३६ अध्ययनों का नामोल्लेख मिलता है वे वर्तमान में उपलब्ध उत्तराध्ययन के अध्ययनों के नामों से कुछ भिन्न हैं । नामों की भिन्नता होने पर भी विषयगत भिन्नता नहीं हैं । नियुक्तिकार द्वारा निर्दिष्ट नामों में भी कुछ वैषम्य दिखाई देता है। नाम उत्तराध्ययन १. विनयश्रुत २. परीषहप्रविभक्ति ३. चातुरंगीय ४. असंस्कृत ५. अकाभमरणीय ६. क्षुल्लक निग्रंथीय ७. उरभ्रीय ८ कापिलीय ६. नमिप्रव्रज्या १०. द्रुमपत्रक ११. बहुश्रुतपूजा नियुक्तिकार १. विनयश्रुत २. परीषह ३. चतुरंगीय ४. असंस्कृत ५. अकाभमरण ६. निग्रंथ ७. औरभ्र ८. कापिलीय ६. नमिप्रव्रज्या १०. द्रुमपत्रक ११. बहुश्रुतपूजा समवाओ १. विनयश्रुत २. परीषह ३. चातुरंगीय ४. असंस्कृत ५. अकाभमरणीय ६. पुरुषविद्या ७. औरभ्रीय ८. कापिलीय ६. नमिप्रव्रज्या १०. दुमपत्रक ११. बहुश्रुतपूजा खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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