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१२. हरिकेशीय १२. हरिकेश
१२. हरिकेशीय १३. चित्रसंभूति १३. चित्रसंभूति
१३. चित्रसंभूत १४. इषुकारीय १४. इषुकारीय
१४. इषुकारीय १५. सभिक्षुक १५. सभिक्षु
१५. सभिक्षुक १६. ब्रह्मचर्यसमाधि स्थान १६. समाधिस्थान
१६. समाधिस्थान १७. पापश्रमणीय १७. पापश्रमणीय
१५. पापश्रमणीय १८. संजतीय १८. संयतीय
१८. संजतीय १६. मृगापुत्रीय १६. मृगचारिका
१६. मृगचारिका २०. महानिग्रंथीय २०. निग्रंथीय
२०. अनाथप्रव्रज्या २१. समुद्रपालीय २१. समुद्रपालीय
२१. समुद्रपालीय २२. रथनेमीय २२. रथनेमीय
२२. रथनेमीय २३. केशिगौतमीय २३. केशिगौतमीय २३. गौतमकेशीय २४. प्रवचनमाता २४. समिति
२४. समिति २५. यशीय २५. यज्ञीय
२५. यज्ञीय २६. सामाचारी २६. सामाचारी
२६. सामाचारी २७. खलुंकीय २७. खलुंकीय
२७. खंलुंकीय २८. मोक्षमार्गगति २८. मोक्षगति
२८. मोक्षमार्गगति २६. सम्यक्त्वपराक्रम २६. अप्रमाद
२६. अप्रमाद ३०. तपोमार्गगति ३०. तप
३०. तपोमार्ग ३१. चरणविधि ३१. चरण
३१. चरणविधि ३२. प्रमादस्थान ३२. प्रमादस्थान
३२. प्रमादस्थान ३३. कर्मप्रकृति ३३. कर्मप्रकृति
३३. कर्मप्रकृति ३४. लेश्याध्ययन ३४. लेश्या
३४. लेश्याध्ययन ३५. अनगारमार्गगति ३५. अनगारमार्ग
३५. अनगारमार्ग ३६. जीवाजीवविभक्ति ३६. जीवाजीवविभक्ति ३६. जीवाजीवविभक्ति
जेकोबी की मान्यता है कि उत्तराध्ययन और सूत्रकृतांग में समानता है। किंतु उत्तराध्ययन विस्तार से एवं निपुणता से रचा गया है। इसकी विषय वस्तु संक्षेप में इस प्रकार है
१. मुनि को अपनी मूलचर्या का अवबोध देना। २. उदाहरणों एवं घटनाओं द्वारा मुनि जीवन को यशस्वी बनाना। ३. अध्यात्मपथ में आने वाले खतरों से मुनि को अवगत कराना।
४. मुनि को जैन सिद्धान्तों की संक्षिप्त जानकारी देना। भाषा शैली
इसकी मूल भाषा अर्धमागधी प्राकृत है परन्तु कहीं-कहीं महाराष्ट्री प्राकृत के प्रयोग भी बहुलता से मिलते हैं। इसमें व्याकरण सम्बन्धी विशिष्ट प्रयोग भी मिलते
तुलसी प्रज्ञा
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