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________________ कत वाचक शब्द शक्र बना है उसी प्रकार "शक" से "शक" "कर्तृवाचक बनाया गया है। शक्र का विशिष्ट अर्थ इंद्र भले ही हो फिर भी सामान्य अर्थ ईश्वर, राजा, सामथ्यंशील व्यक्ति, सत्ताधारी आदि है । वही अर्थ "शक" का है। शक अर्थात् समर्थ, ऐश्वर्यवान् तथा काल-प्रवर्तक राजा" (राजवाड़े लेख संग्रह, आगरा, १६६४ ई०, पृ० २४४) । शक जाति भी समर्थ, ऐश्वर्यवान, प्रतापी होने से ही शक कहलाती थी। इस नाम की और कोई व्याख्या नहीं है।" अन्त में हम कह सकते हैं कि 'शक' शब्द कानों में पड़ते ही किसी विदेशी जाति की कल्पना करना अनावश्यक है । अतः सुमतितन्त्र में जिस शकराजा का उल्लेख है या महावीर के निर्वाण के ६०५ वर्ष बाद जिसका जन्म हुआ बताया जाता है उसे शक जाति में उत्पन्न राजा समझ लेना आवश्यक नहीं है, वरंच इससे भ्रम में पड़ने की सम्भावना ही अधिक है । इसीलिए इस शकराजा का समय १५० ई० पू० के बाद या नवम् शताब्दी ई० पू० के बाद मानना भी आवश्यक नहीं। सुमतितन्त्र में उल्लिखित शकराजा कौन है, वह वीर-निर्वाण के ६०५ वर्ष बाद जनमे हुए शकराजा से अभिन्न है या नहीं, इन प्रश्नों का उत्तर दे सकने का सामर्थ्य मुझमें अभी नहीं है किन्तु शकजाति से अनिवार्यतः सम्बन्ध जोड़ने की प्रवृत्ति को संयत किया जाय तो निकट भविष्य में इन प्रश्नों के उत्तर भी प्राप्त हो सकते हैं। अभी तो जन-साहित्य में प्राप्त समस्त ऐतिहासिक सामग्री का संग्रह, प्रकाशन और अध्ययन-मनन ही बाकी है। 000 कालचक्र ____ कालचक्र सबसे बलवान् होता है । संसार का कालचक्र चलता रहता है। जो जन्म लेता है वह मरता भी है किन्तु इन दोनों के बीच जो व्यक्ति सजगता एवं प्रामाणिकता से जीवन जीकर अपने परिवार में इन संस्कारों को छोड़ जाता है, उसे याद करते हैं। प्रत्येक क्षण मूल्यवान् होता है । जो क्षण का मूल्य समझ__ कर प्रमाद नहीं करते वे अपने लक्ष्य व अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेते हैं। 'कालचक्र' से साभार खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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