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________________ शक जाति और "शक" शब्द का मूल फिर भी कुछ विद्वानों का आग्रह है कि 'शक' शब्द किसी शक जाति के राजा से सम्बद्ध अवश्य है और उसका मूल अवश्य ही कोई विदेशी भाषा है। इस सम्बन्ध में जो बात भुला दी जाती है वह यह कि पाणिनि की अष्टाध्यायी भी ऐसे शब्दों से परिचित है जो शक-भाषा के माने जाते हैं । इससे स्वाभाविक निष्कर्ष तो यह निकालना चाहिए था कि ईरानी भाषा की भांति शक भाषा भी संस्कृत से निकली है। परन्तु न जाने क्यों हमारे देश के विद्वानों पर सर्वत्र आक्रमण ही आक्रमण देखने की धुन सवार है। इसलिए १५० ई० पू० के शक-आक्रमण के पूर्व नवम शताब्दी ई० पू० में एक और शकआक्रमण की कल्पना कर ली गयी है । इस मत के दो मुख्य प्रचारक हैं---डॉ० बुद्धप्रकाश और डॉ. वासुदेव-शरण अग्रवाल । ___ डॉ. अग्रवाल लिखते हैं-"पाणिनि को निश्चित रूप से उशीनर (आधुनिक झंग मधियाना) और वर्ण (आधुनिक बन्नू और वजीरिस्तान का इलाका, गोमल-तोची आदि नदियों की दूनों का भाग) प्रदेशों में कंथान्त स्थान-नाम मिले। इस प्रदेश में कथान्त नामों की संगति के लिए मानना चाहिए कि पाणिनि से भी पूर्व किसी समय शक जाति का प्रसार और सम्पर्क गजनी-गन्धार की अधित्यका से उतरकर तोची-गोमल नदियों के मार्ग से रावी ओ चनाब के कांठे (उशीनर जनपद) तक पहुंचा था" (पाणिनिकालीन भारत, १६६६ ई०, पृ० ८२) । इस कल्पना के लिए उन्होने किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं समझी । न किसी भारतीय ग्रंथ या अभिलेख में ही नवम शताब्दी ई० पू० के शक आक्रमण का उल्लेख है न किसी विदेशी साक्ष्य से ही इसकी पुष्टि होती है। ऐसी स्थिति में ऐसा क्यों न मानें कि शक जाति रावी और चनाब के कांठे से निकल कर गजनी-गन्धार की ओर चली गयी थी ? भारतीय परम्परा ऐसा ही मानती है । मनु ने शकों की गणना उन क्षत्रियजातियों में की है जो कालांतर में म्लेच्छ बन गयी थीं : "वृषलत्वं गताः लोके इमा। क्षत्रियजातयः ।। पौण्ड्रकाश्चोऽद्रविडाः काम्बोजाः यवनाः शकाः।" -मनु० १०१४३-४४ विष्णुपुराण में शकों की गणना उन क्षत्रियों में की गयी है जो सगर द्वारा बहिष्कृत किये गये और धर्मच्युत होकर म्लेच्छ बन गये (म्लेच्छतां ययुः ---विष्णु ० ४।३।२१) । ऐसे स्पष्ट प्रमाणों को नकार कर कल्पना के पीछे दौड़ना शोध नहीं है। अतः शक भारतीय क्षत्रिय थे जो कभी रावी और चनाब के कांठे में रहते थे। उनकी भाषा प्राचीन संस्कृत ही थी । जब वे भारत के बाहर मध्य एशिया की ओर फैल गये तो उनकी भाषा और संस्कृति क्रमशः भिन्न हो गयी । अत: शक जाति का नाम भी मूलतः संस्कृत शब्द सिद्ध होता है । इस "शक" शब्द का अर्थ क्या है ? इस सम्बन्ध में विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े के विचार मुझे युक्त लगते हैं अत: उन्हीं के शब्दों पर ध्यान दें--"शक से जिस प्रकार तुलमी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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