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'त्रिलोकसार' का कल्की राजा और यूनानी लेखकों का
सैण्डाकोटस क्या एक हैं ?
डॉ. परमेश्वर सोलंकी*
श्री भारत धर्म महामंडल द्वारा संरक्षित श्री निगमागम पुस्तक भाण्डार की ओर से संवत् १९६३ में 'कल्कि पुराण' का प्रकाशन हुआ था। काशी से प्रकाशित यह कल्की पुराण महर्षि वेदव्यास प्रणीत कहा गया किन्तु वास्तव में वह युग-परिवर्तन की कामना का परिचायक है और किसी क्रान्तदर्शी कवि की कृति है। इसके तीन अंश और ३५ अध्यायों में मात्र १३६६ श्लोक हैं जबकि 'पुराणोपपुराणसंख्यामान' अनुसार कल्कि पुराण में ६१०० श्लोक बताए गए हैं।
कल्कि पुराण का मंगलवाक्य भी उसे किसी संस्कृत कवि की कृति प्रतिज्ञापित करता है
"यदोर्दण्ड कराल सर्प कवल ज्वालाज्वल द्विग्रहाः
नेतुः सत्कर वालदण्डदलिताभूपाः क्षिति क्षोभकाः । शश्वत् सैन्धववाहनो द्विजजनिः कल्कि: परात्माहरिः
पायात्सत्ययुगादिकृत्स भगवान्धर्मप्रवृत्ति प्रियः ॥" भयंकर अत्याचारों से पृथ्वी की शांति को भंग करने वाले राजागण जिसके भुजभुजङ्गविषज्वाल से भस्म होंगे, जिसकी भंयकर तीक्ष्ण खंगधार से अत्याचारी राजाओं को दण्डित किया जाएगा वह ब्राह्मणवंशोत्पन्न सिन्धुदेशीय अश्वरोही सत्यादि युगों के अवतरणकर्ता धर्म प्रवृत्तिप्रिय भगवान् कल्की परमात्मा हरि तुम्हारी रक्षा करे ! ... इस पुराण की प्राचीनता के संबंध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है। महाभारत (वनपर्व, अध्याय-१६०), श्री मद्भागवत (बारहवें स्कन्ध का दूसरा अध्याय); भविष्यपुराण (युग परिवर्तन प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खंड), अग्नि पुराण (कलियुग कारण), गरुड़ पुराण (अध्याय-१४६) आदि और विष्णु धर्मोत्तर पुराण के श्लोक-'कलेरन्ते तु संप्राप्ते कल्किनं ब्रह्म वादिनम् । अनुप्रविश्य कुरुते वासुदेवो जगत् स्थितम् ॥'-में कल्की-प्रसंग उपलब्ध होते हैं। कश्मीरी कवि क्षेमेन्द्र के 'दशावतार चरित' में कल्की को 'शिशुकिकुले द्विजे'-कहा गया है और सुप्रसिद्ध गीतिकार जयदेव ने उसे- 'केशवधृत कल्की शरीर जय जगदीश हरे'-कहकर संस्तुत किया है।
फिर भी जैन ग्रन्थों में वर्णित कल्की इससे भिन्न हैं। त्रिलोकसार में कल्की का वर्णन करते हुए लिखा है* शोधकर्ता, अनेकान्त शोध पीठ, जैन विश्व भारती, लाडनं (राज.)
खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०)
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