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________________ (२) उच्च सांद्रण में यह कोशिकाओं से जल खींचकर उन्हें अक्रिय बना देता है, विकृत कर देता है । इससे यह कीटाणु नाशक एवं प्रतिरोधी होता है । (३) तनु मद्य क्षुधावर्धक होता है। यह पेट की आंतों में हिस्टमीन एवं गैस्ट्रीन विमोचित कर स्रावों को बढ़ाता है। यह मनोवैज्ञानिकत: उत्तेजक एवं ऊष्मादायी होता है । १५% से उच्च सांद्रण का मद्य नावों की गतिशीलता रुद्ध करता है, श्लेष्मा-झिल्ली को उत्तेजित करता है, गैस, वमन एवं मितली लाता है तथा पेट और आंतों को एन्जाइमी क्रिया को प्रतिबंधित करता है। (२) मद्य मन को मोहित करता (४) यह केन्द्रीय नाड़ी तंत्र को अवनत कर है। मद्यपान से अभिमान, सुखाभास या तनाव-शैथिल्य का आभास भय, क्रोध आदि हिंसक देता है। इस कारण ही मद्यपायी वृत्तियां उदित होती हैं। व्यक्ति समस्त प्रतिबंधों से मुक्त होकर मद्यपान धार्मिक गुणों को निंदनीय या असामाजिक व्यवहार नष्ट करता है। करता है। यह उन्माद, मूर्छा, मिर्गी (५) मद्य मस्तिष्क के जालकों एवं सक्रियता एवं मृत्यु तक का कारण नियंत्रक केन्द्रों को प्रभावित कर उन्हें होता है। अक्रिय करता है। यह दृष्टि की मद्य दुर्गति का कारण है। तीक्ष्णता एवं मस्तिष्क व मांसपेशियों मद्य चित्त-विम्रम उत्पन्न की समन्वय-क्षमता कम करता है। करता है। (६) यह वेदनाहर नहीं है, फिर भी यह मद्य कु-योनिज भोजन है। वेदना की अनुभूति-गम्यता की सीमा मद्य पायियों की संगति भी को बढ़ाता है और सुखाभास देता है। दोष जनक है। (७) ५.६ ग्राम से अधिक मद्य पीने पर मात्रानुसार प्रभाव बढ़ते हैं और बेहोशी तक आ जाती है। इसकी अधिक मात्रा सुषुम्ना को प्रभावित करती है, हृदय को कंपन बढ़ाती है, रक्तचाप बढ़ाती है एवं हृदय-पेशियों को हानि पहुंचाती तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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