SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संभवत: नियुक्तिकार ने आचारांग निथुक्ति में इसी के आधार पर पांच प्रकार के श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय का उल्लेख किया हो। इनके द्वारा प्रतिपादित कृष्ण, नीला, लाल, पीला और सफेद रंग जैन ग्रंथों में प्रतिपादित पांच वर्षों से मेल खाते हैं। परतु प्रज्ञापना और उत्तराध्ययन सूत्र में जो सात प्रकार के श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय का विवरण मिलता है, वह किस आधार पर है यह एक शोध का विषय है। अगर हम इन सात वर्णो को भौतिक विज्ञान में प्रतिपादित सात रंगों के साथ तुलना करना चाहें तो इनमें अंतर आ जाता है । भौतिक विज्ञान में सात मौलिक रंग हैं—बैंगनी, जम्बुक, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल तथा जैन ग्रंथों (प्रज्ञापना और उत्तराध्ययन) में श्लक्षण बादर के भी सात रंग बताए गए हैं- कृष्ण, नीला, रक्ताभ, पीला, श्वेत, पाण्डू और पनक (हरा) । अत: इन दोनों का भी अंतर स्पष्ट है । श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय के सात भेदों का संक्षिप्त विववण प्रस्तुत किया जा रहा है १. कृष्ण-काले रंग की मिट्टी २. नील-नीले रंग की मिट्टी ३. रक्त-रक्त के समान लाल रंग की मिट्टी ४. पीत-हल्दी के समान पीले रंग की मिट्टी ५. शुक्ल-श्वेत मिट्टी ६. पाण्ड-- श्वेत और पीले रंग के मेल से बनी मिट्टी अर्थात् हल्के पीले रंग की मिट्टी ७. पनक-गहरे हरे रंग की मिट्टी। (ख) रूक्ष बादर पृथ्वीकाय-किसी विशेष परिस्थिति या कारणवश जिन पृथ्वीकाय जीवों का शरीर कठोर या रूक्ष हो जाता है, उन्हें खर या रूक्ष बादर पृथ्वीकाय कहा जाता है । रूक्ष बादर पृथ्वीकाय अनेक प्रकार के होते हैं। जैनग्रंथों जैसे आचारांग नियुक्ति, उत्तराध्ययन सूत्र," पंचसंग्रह, मूलाचार" में इनकी कुल संख्या ३६ मानी गई है परंतु प्रज्ञापना सूत्र" में ४० । यद्यपि उत्तराध्ययन सूत्र की मूल गाथा में ३६ संख्या का ही उल्लेख है, परंतु जब इन जीवों का नाम गिनाया जाता है तब संख्या ४० तक पहुंच जाती है । चालीस प्रकार के खर बादर पृथ्वीकाय के नाम निम्नलिखित हैं--१. शुद्ध मिट्टी, २. शर्करा, ३. बालू, ४. उपल-पत्थर, ५. शिला, ६. लवण, ७. ऊष, ८. लोहा, ६. ताम्बा, १०. त्रपुक, ११. सीसा, १२ चांदी, १३. सोना, १४ वन-हीरा, १५. हरिताल, १६. हिंगुल, १७. मैनसिल, १८. सस्यक, १६- अंजन, २०. प्रवाल, २१. अभ्रक, २२. अभ्रक बालू, २३. गोमेद, २४. रूचक, २५ अंक, २६. स्फटिक, २७. लोहिताक्ष, २८. चंदन, २६. गेरु, ३०. हंसगर्भ, ३१. भुजमोचक, ३२. मसारगल्ल, ३३. चंदप्रभ, ३४. वैडूर्य, ३५. जलकांत, ३६. सूर्यकांत, ३७. मरकत, ३८. पुलक, ३६. इन्द्रनील और ४०. सौगंधिक। उपर्युक्त ४० प्रकार के रूक्ष बादर पृथ्वीकाय के जो नाम गिनाए गए हैं उनमें से १ से ३६ तक तो क्रम सही है तथा बाद का अर्थात् ३७ से ४० तक का क्रम सही नहीं है। यह इसीलिए किया गया क्योंकि कुछ ग्रंथों में ३६ तो कुछ में ४० संख्या का तुलसी प्रमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy