SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवत्सर भी ५४३ बी. सी. से शुरू बताया गया है। ४. एक सूचना यह है कि मध्य एशिया में खोतान के बौद्धराजा विजितधर्म (मनीन्द्र या मिनाण्डर) के पुत्र विजितसिंह का कनिष्ठ पुत्र देव था जिसने लगभग छठी सदी ईसा पूर्व उत्तरी भारत विजित किया और अपना देव पुत्रशक संवत्सर प्रचलित किया। ५. यति वषभाचार्य की तिलोय पण्णत्ती के चौथे 'महाधिकार की गाथा (क्रमांक १४६६ और १४६६) में वीरजिन के सिद्धि पाने से ४६१ वर्ष बाद और वीर जिन के निर्वाण से ६०५ वर्ष ५ माह बाद शकराजा का होना बताया गया है । गाथा क्रमांक १४६७ और गाथा-१४६८ में वीर भगवान् के सिद्ध होने तथा वीरेश्वर भगवान् के सिद्ध होने से क्रमश: ६७८५ वर्ष ५ माह और १४७६३ वर्ष बाद शक नृप होना भी लिखा है। ___ तिलोय पण्णत्ती के ये उल्लेख विष्णुधर्मोत्तर पुराण (८०.५.१०) में दिये वन मार्कण्डेय संवाद में उल्लिखित संख्या से मेल खाते हैं । वहां लिखा है अद्य प्रभृति राजेन्द्र ! समाः पंचाशके गते । परिक्षिति महाराजे दिवं प्राप्ते कुरूद्वहे । वाताश्व मेघवर्षेऽस्मिन् सपक्षेण यादव ! अर्थात् ५० वर्ष बाद जब महाराज परिक्षित दिवंगत होंगे तो तुम भी (यादव राजा वज्र) स्वर्ग को प्राप्त होगे। यहां मार्कण्डेय ऋषि "आज" और "इस वर्ष" का प्रयोग करते हैं और उसे १४७४६ वां वर्ष कहते हैं । इस प्रकार शक राजा का काल जो बी. सी. ५४३ अथवा विक्रम पूर्व ५४३ वर्ष बताया गया है, वह संशोधनीय है । इसी प्रकार वर्ष १४७४६ अथवा १४७९३ वर्षों का संवत्सर और ८६४० वर्ष अथवा ६७८५ वर्ष का संवत्सर भी खोजने योग्य है। आशा है, अधिकारी विद्वान इस शोध कार्य में समभागी बनेंगे और भारतीय काल गणना का यह अस्पष्ट अध्याय स्पष्ट हो सकेगा।" सन्दर्भः१. बुटिश म्यूजियम लाइब्रेरी, लंदन में सुरक्षित सुमतितंत्र की ताड़-पत्रीय प्रति में लिपिकाल नेपाली संवत् ४७६ (एडी १३५६) लिखा है । देखने में भी वह नेपाल स्टेट लाइब्रेरी की प्रति से कम प्राचीन दीख पड़ती है। "कैटेलोग ऑफ दी संस्कृत मेन्यूस्क्रिप्ट्स इन दी बृटिश म्यूजियम" में पृष्ठ १६३-६४ पर सुमतितंत्र का ब्योरा छपा है। २. फोटो ब्लॉक में "क्रमेणतु" के पश्चात् अनुपूर्ति का निशान I लगा है किन्तु अनुपूर्ति की पंक्तियां नहीं हैं। ब्रिटिश म्यूजियम लाइनरी की प्रति में "क्रमेणतु" के पश्चात् का पाठ दिया है ---"सेषायुताश्च कृत अम्बराग्नि ३०४ श्री मानदेवाब्द-प्रयुज्यमाना एतानि पिण्डकलिवर्षमाहुः ।।" (शेषाश पृष्ठ ४० पर) पड १६, अंक १ (जून, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524562
Book TitleTulsi Prajna 1990 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy