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________________ ० आप्त पुरुष वीतराग सर्वज्ञ की ही वाणी को आगम माना जा सकता है, उसका कारण व्यक्ति विशेष नहीं अपितु वीतराग, सर्वज्ञता की अवस्था से अनुस्यूत तत्व है। वह सदा मूल सत्य को पुष्ट करने वाला स्याद्वाद वचन होता है । • जिन आगम ग्रन्थों में विषमवाद आया हुआ है, इसलिए ही उन्हें अमान्य किया गया है। ० वीतराग-पुरुष हिंसा, परिग्रह, रात्रि भोजन आदि की अनुमति कैसे दे सकते है ? जिन आगम ग्रन्थों में इनकी अनुज्ञा दी गई हैं उन्हें आप्त पुरुष के वचन कैसे माने ? जयाचार्य की दृष्टि में आगमों की संख्या चौरासी, पैंतालीस आदि का आग्रह नहीं है। उनकी कसौटी का आधार स्पष्ट है। उस कसौटी पर उतरने वाले आगम बत्तीस या अधिक मान्य किए जा सकते हैं। संदर्भ: १. श्रीमज्जयाचार्यकृत प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध, पृष्ठ-८४,८५ दोहा ६, १० प्रकाशक-जैन विश्व भारती, लाडनूं २. वही ३. अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथति गणवृश निडणं । ___ सासणस्स हियद्वाए, तओ सुत्तं पवत्तइ ।।-आवश्यक नियुक्ति, गाथा २६२ ४. प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध, पृष्ठ ६१, दोहा-१३ ५. पांच व्यवहार ६. वयछक्क कायछक्कं अकप्पो गिह भायणं । पलियंक निसज्झाय सिणाणं सोह वज्जणं ॥ -दसवेआलियं, अ० ६८, जै०वि०मा० प्रकाशन ७. श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्थ च प्रियमात्मनः । एतच्चतुर्विधमाहुः साक्षाद धर्मस्य लक्षणम् ॥-मनुस्मृति, अध्याय-२ ८. ८४ आगम अधिकार' पृष्ठ-१ (अप्रकाशित), जैन विश्व भारती, लाडनूं में उपलब्ध । ६. हस्तलिखित प्रति (अप्रकाशित), जैन विश्व भारती, लाडनूं; (मुनि पुण्यविजय) संपादक 'नंदी अणुओगद्दाराई च', प्रकाशक-श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण, ई० १९६८ १०. ८४ आगम अधिकार, पृष्ठ-१ ११. वही १२. ८४ आगम अधिकार, पृष्ठ-१ (अप्रकाशित), जैन विश्व भारती, लाउन में उपलब्ध १३. वही १४. जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस से प्रकाशित-जन ग्रन्थावली, पृष्ठ-७२ (शेषांश पृष्ठ ३४ पर) खण्ड १६, अंक १ (जून, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524562
Book TitleTulsi Prajna 1990 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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