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________________ टीका उपलब्ध नहीं हो रही है । किसीने उन पर अपनी लेखनी नहीं उठाई। हो सकता है आचार्यों ने उनको मान्य नहीं किया हो । पैंतालिस और चौरासी एक साथ नहीं जयाचार्य के जीवन में आगम की मान्यता के सम्बन्ध में एक चर्चा का विवरण मागणी ने प्रस्तुत किया है, वह एक नवीन दृष्टि को प्रस्तुत करता है""तिमतर समय ना नाम नंदी में, बाकी रह्या ज्यांरा नाम । व्यवहार अने ठाणं माहि छे विवरो, सुणो राख चित ठाम ॥ जे पैतालीस माने माहिला, गुण चालीस नाम तो ताहि । चौरासी आगम माही छे, अने छ नाम चौरासी में नाहि ॥' यदि चौरासी आगम को मानते हैं तो ४५ की जगह आपको ३६ आगम मानने होंगे क्योंकि ८४ में ६ आगम का उल्लेख नहीं है । यदि ८४ मानते हैं तो ६० सूत्र मानने होंगे क्योंकि ४५ में छह अतिरिक्त हैं । ८४ मानने से ४५ की मान्यता नहीं बनती है, ४५ मानने से ८४ की मान्यता का न्याय नहीं बैठता है । पईन्ने अमान्य क्यों ? जो पइन्ने सूत्र में उल्लिखित हैं उनका विवरण निम्नोक्त है— ५. आउर पच्चवखाणं पइन्नो १. देविन्द स्तव पइन्नो २. तंदुल वेयालियं ३. गणी विज्जा पइन्नो ४. मरण विभत्ती पइन्नो ६. महा पच्चक्खाणं पइन्नो ७. महानसीत ८. चंदगविज्जा Jain Education International आगमों में उल्लिखित पइन्नो की समीक्षा करते हुए आगम अधिकार में लिखा है। 'आउर पच्चक्खाण, गाथा ८ में पंडित मरण का अधिकार कहा गया है । गाथा ३१ में में सात स्थान पर धन (परिग्रह ) का उपयोग करने का आदेश है । गाथा ३० गुरू पूजा साधर्मीनी भक्ति आदि सात बोलों का निर्देश है । आउ पच्चक्खाण की साक्षी है किन्तु भक्त पन्ना में नाम नहीं है । सावद्य ( पाप सहित ) भाषा का उपयोग सूत्र में नहीं हो सकता इसलिए यह अमान्य है । श्रवण, गणि विज्जा पइन्ने में भी ज्योतिष की प्ररूपणा की है । उसके उदाहरण हैंधनेष्टा, पुनखसु - तीन नक्षत्रों में दीक्षा नहीं लेनी चाहिए। ( गाथा २२ ) लेकिन २० तीर्थंकरों ने श्रवण नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की ऐसा आगमों में उल्लेख है आगम में जिस कार्य को मान्य किया उसके विपरीत उसका निषेध करे, उसे कैसे मान्य किया जाए । उसका आधार क्या हो सकता है ? आगे वहीं आया है किसी-किसी नक्षत्र में की सेवा नहीं करनी चाहिए, लुंचन नहीं करना चाहिए ये सब बातें गुरू आगम में अनुमोदित नहीं हैं । इसलिए इनको मान्य नहीं किया गया है । -- ' तंदुल वेयालियं' में संठाण के सम्बन्ध में चर्चा है, वह आगमों में सूचित निर्देशों से भिन्न है । परस्पर मेल नहीं खाता । वहां लिखा है" 'संहनन और संठाण होता है । दूसरे आगमों में छह ही पांचवें आरे के मनुष्य के अंतिम संठाण संहनन मनुष्यों में ----- For Private & Personal Use Only = पाए तुलसी, ज्ञा 1 www.jainelibrary.org
SR No.524562
Book TitleTulsi Prajna 1990 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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