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एवं शाश्वत कोई अंक नहीं है। यह 8 अंक का किसी भी संख्या से गुणन करने पर आयी संख्या का योग ६ ही आएगा। यह अंक अपने में स्वतः परिपूर्ण, पूर्णता की सीमा सूचक पूर्णमिदम् है ।"
जैनदर्शन में ८ कर्म माने गए हैं- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय । इन अष्टकर्मों का जीवात्मा अपनी १०० साल की आयु मर्यादा में क्षय करके "केवलज्ञान" मोक्ष की प्राप्ति करे ।" इसीलिए १०० + ८ १०८ मंत्र परमेष्ठि के गुणों का स्मरण करने का शास्त्र विधान है ।
मुसलमान जब कोई गलती करता है तो तोबा तोबा कहता है और अपने खुदा से क्षमा मांगता है, तोबा में चार वर्ण हैं त ओ ब आ । इन चारों वर्णों को वर्णमाला के क्रमांक १६+१३+२३+२ - ५४ हुए । इसी तरह तोबा, तोबा की संख्या १०८
१०८ का अपना एक चमत्कार है, यह एक प्राणधारा है । हमारे शरीर में अनेक उप-प्राणधाराएं हैं, इन्द्रियों की अपनी प्राणधारा है, मन, वाणी और शरीर की अपनी प्राणधारा है, श्वास-प्रश्वास की और जीवनशक्ति की भी स्वतंत्र प्राणधाराएं हैं। हमारे चैतन्य का जिस प्रवृत्ति के साथ योग हो जाता है वही प्राणधारा बन जाती है ।
सन्दर्भ :
१. उत्तरज्झयणाणि ३४।२७, २८
नयावत्ती अवचले, अमाई अकुऊहूले । विणीयविणए दन्ते जोगवं उवहाणवं ।। जिधम्भे दम्मे, वज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥
२. मुक्तिकोपनिषद्, १२७
३. भगवई १५६६-७०
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमसिता, एवं वयासी कण्ण भंते । संखित्त विउलतेययलेस्से भवति ? तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासीजेयं गोसाला ! एगाए सणहाए कुम्मासपिडयाए एगेण य वियडासएणं छट्ठणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय । सूराभिमूहे आयावणभूमिए आयावेमाणे विहरइ । से णं अंतो छण्हं मासाणं संखित्त विजलतेयलेस्से भवइ ।
४. अंकज्योतिष, गोपेशकुमार ओझा, पृ० ३४
५. मोक्षमार्गप्रकाशक, लेखक -- पं. टोडरमल ३२/४४
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खण्ड १५, अंक ४, (मार्च, ६० )
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