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________________ जैन संस्कृत स्तोत्र साहित्य : उद्भव एवं विकास [ श्रीमती संगीता मेहता * ( खण्ड १५, अंक २ से आगे ) मानतुंगाचार्य विक्रम की सातवीं शती में मानतुंगाचार्य ने भक्तामर स्तोत्र' की रचना की । आचार्य रूद्रदेव त्रिपाठी के अनुसार मानतुंगाचार्य ने आठवीं शती में भक्तामर स्तोत्र' "नमिउण्थोत्तं" एवं "भत्तिभर थोत्तं" नामक स्तोत्रों की रचना की । इनका भक्तामर स्तोत्र श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में समान रूप से समादृत है । यह स्तोत्र सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ । परिणामस्वरूप इस पर १६ टीकाएं तथा २२ से अधिक पादपूर्तिमूलक काव्यों की सृष्टि हुई। इसके प्रत्येक पद्य के आद्य या अंतिम चरण को लेकर समस्यापूर्ति - आत्मक स्तोत्र काव्य लिखे जाते रहे हैं । इस स्तोत्र में ४८ पद्य हैं, प्रत्येक पद्य 'काव्यत्व रहने के कारण ४८ काव्य कहे जाते हैं । इस स्तोत्र में भगवान् आदिनाथ की स्तुति वर्णित है | मानतुंगाचार्य की रचनाओं में भक्ति के साथ ही मंत्र, तंत्र, यंत्र, आभाणक तथा अन्यान्य शास्त्रीय विषयों का मंथन भी हुआ और इस प्रकार स्तोत्र साहित्य में एक नये प्रयोग का सूत्रपात हो गया। जैन संस्कृत स्तोत्र परम्परा के विकास में लोकप्रिय स्तोत्रकार मानतुंगाचार्य का योगदान अत्यन्त स्पृहणीय है । हरिभद्रसूरि आठवीं शती में हरिभद्रसूरि ने एक लघु किन्तु महत्वपूर्ण "संसारदावानल स्तुति " की "भाषासमक' पद्धति में रचना की ।' अभिनव पद्धति में स्तोत्र रचना की दृष्टि से हरिभद्रसूरि का योगदान उल्लेखनीय है । धनंजय ईसवी सन् की आठवीं शती में का प्रणयन किया । इस स्तोत्र में ४० और उसमें कर्त्ता ने अपना नाम सूचित किया है । बप्पभट्टि महाकवि धनंजय ने "विषापहार" नामक स्तोत्र इन्द्रवज्रा पद्य हैं, अंतिम पद्य का छंद भिन्न है भट्टि का समय सन् ७४३ - ८३८ बताया जाता है ।" इन्होंने सरस्वतीस्तोत्र, वीरस्तव, शान्तिस्तोत्र और चतुर्विंशति- जिन स्तुति' की रचना की है । सरस्वती स्तोत्र में १३ पद्य और वीरस्तव में ११ पद्य हैं । चतुर्विंशतिका में ह६ पद्य हैं और यमकालंकार * सहायक प्राध्यापक (संस्कृत), शासकीय महाविद्यालय, महू । खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ९० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only २१ www.jainelibrary.org
SR No.524561
Book TitleTulsi Prajna 1990 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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