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________________ को न मानने में कोई हानि नहीं है । परलोक के होने पर असद् आचारी नास्तिक का दांव उलटा पड़ जाएगा अर्थात् उसकी ही हानि होगी। कुछ पाश्चात्य दार्शनिकों (प्लेटो, सुकरात, अरस्तू आदि) ने भी भारतीय परंपरा के समान पुनर्जन्म का सिद्धांत स्वीकार किया है। प्लेटो के विचारानुसार संसार के सभी पदार्थ द्वन्द्वात्मक हैं । अतः जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जीवन अनिवार्य है।" हीगल जैसे कुछ विद्वान् पुनर्जन्म को नहीं भी मानते हैं। किन्तु यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पाश्चात्य दर्शन परम्परा में भी चैतन्य की नित्यता एवं पुनर्जन्म सम्बन्धी विचार पाए जाते हैं । दार्शनिकों के अतिरिक्त आधुनिक वैज्ञानिक भी चेतना की उत्पत्ति के कारण को न खोज पाने से पुनर्जन्म के विचार को मान्यता देते हैं । चैतन्य संयोग से पैदा होता है या अचानक आकाश से टपक पड़ता है—इन प्रश्नों का समाधान न होने पर वैज्ञानिकों ने विचार किया कि संसार में हम ऐसे अजनबी और अचानक आ पड़ने वाले तो नहीं हैं जैसा हमने पहले सोचा था । आर्थर एच. काम्पटन लिखते हैं- "एक निर्णय जो बताता है कि......."मृत्यु के बाद आत्मा की संभावना है। ज्योति लकड़ी से भिन्न है.... लकड़ी तो थोड़ी देर उसे प्रकट करने में इंधन का काम करती है।"१८ चेतना शरीरादि से मिन्न है किन्तु शरीरादि से इसकी अभिव्यक्ति होती है। कुछ वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि जैसे मनुष्य दो दिन के बीच की रात में स्वप्न देखता है उसी तरह चेतना, मृत्यु एवं पुनर्जन्म के बीच विश्व में घूमती रहती है। इस प्रकार चैतन्य के नित्यत्व एवं पुनर्जन्म सम्बन्धी विचारों में एकत्व है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय विचारकों, पाश्चात्य दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म के विचार को स्वीकार किया है । भारतीय आध्यात्मवाद का यह अत्यन्त प्राचीन सिद्धांत है जो भारतीय दर्शन की प्रायः सभी धाराओं में मान्य है। इस सिद्धांत की जड़ें वेदों एवं उपनिषदों में हैं । प्राचीन मनीषियों के अनुसार त्रिकालज्ञ ऋषि एवं निष्कपट और सरल चित्त व्यक्ति अपने पूर्वजन्मों, कर्मों एवं भावी घटनाओं को जान सकते हैं । ध्यातव्य है कि भारतीय आध्यात्मवादियों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत को दृढ़ता से मानने के साथ-साथ इससे छुटकारा पाने के उपाय भी बताए हैं । पुनर्जन्म उस जीव का होता है जो कषाय एवं कर्मों के संस्कारों से बंधा रहता है, जो इन से छूट जाता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता। वस्तुतः पुनर्जन्म के सिद्धांत की स्वीकृति व्यक्ति को दूसरों का अहित करने एवं अशुभ कार्यों से रोकती है। पुनर्जन्म को मानने या न मानने से पुनर्जन्म के नियम की कोई हानि नहीं होती, यदि वह है तो भी, नहीं है तो भी, किन्तु इतना अवश्य है कि पाप-भय एवं मानवकल्याण की दृष्टि से यह सिद्धांत अत्यन्त उपयोगी है । इस जीवन के बाद भी जीवन मिलेगा । जीवन के प्रति आशावादी एवं रचनात्मक दृष्टिकोण और मृत्यु के प्रति भय न होकर एक तटस्थता का-सा भाव उत्पन्न हो जाता है। अत्यन्त प्राचीनकाल से इस विषय पर चिन्तन-मनन एवं खोजें चल रही हैं किन्तु विश्वासखण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ६०) १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524561
Book TitleTulsi Prajna 1990 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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