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________________ नाम भी प्रायः सभी के मुख पर समस्तपद की तरह एक साथ रहते थे। पूज्य कालूगणी हमें “नत्थू-बुद्ध" कह कर पुकारते थे और हमारे अध्यापक मुनि तुलसी "नथमल जीबुद्धमल जी" कहा करते थे। हंसने का दण्ड बाल-चापल्य के कारण हम दोनों हंसा बहुत करते थे । सकारण तो कोई भी हंस लेता है, पर हम अकारण भी हंसते थे। पाठ याद करते समय हम दोनों को कमरे के दो कोनों में भींत की ओर मुह करके बिठाया जाता था, फिर भी झुक झुक कर हम एक दूसरे की ओर देखते और हंसते । छोटी-मोटी कोई भी घटना या स्थिति हमारे हंसने का कारण बन जाती थी। हम अभिधान चितामणि कोष कंठस्थ कर रहे थे । मुनि तुलसी के पास वाचन करते समय जब “पेढालः पोट्टिलश्चापि" जैसे विचित्र उच्चारण वाले नाम हमारे सामने आये तो हम दोनों अपनी हंसी रोक नहीं पाये । कठोर अनुशासन पंसद करने वाले हमारे अध्यापक मुनि तुलसी ने उस उदंडता के लिए कई दिनों तक हमारा शिक्षण बंद रखा । इसी प्रकार मेवाड़ से आये एक व्यक्ति की फटी-फटी सी बोली सुनकर भी हम अपनी हंसी नहीं रोक सके और दंड स्वरूप कई दिनों तक शिक्षण बंद रहा। बच गए तारानगर की बात है । मैं पानी पीने के लिए गया। उसी समय मुनि नथमल भी वहाँ पहुंच गये । वे मुझे हंसाने का प्रयास करने लगे। बहुत देर तक उन्होंने मुझे पानी नहीं पीने दिया । आखिर झल्लाकर मैंने उनको धमकी दी कि मुनि तुलसी के पास मैं आपकी शिकायत कर दूंगा । तब वे रुके और मैं पानी पी सका । उस समय हम दोनों को ही पता नहीं था कि पास के कमरे से महामना मगनलाल जी स्वामी हमारी कारस्तानी देख रहे हैं। सायंकालीन भोजन परोसते समय मंत्री मुनि ने कालूगणी के सम्मुख ही हमसे पूछा कि आज मध्याह्न में पानी पीते समय तुम दोनों क्या कर रहे थे ? हम दोनों की तो मानों घिग्घी ही बंध गई । मंत्री मुनि ने हंसते हुए हमारी नोक-झोंक कालूगणी को सुनाई और कहा-दोनों ही बहुत चंचल हैं। आचार्यश्री ने अर्थभरी दृष्टि से हमारी ओर देखा और मुस्करा दिये । हम दोनों तब आश्वस्त हो गये कि बच गये । बड़ा बनना है या छोटा? लगता है आचार्यप्रवर ने हमारे हंसने के उस स्वभाव को बदलने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोग किया। हम दोनों उपपात में बैठे थे तब उन्होंने कहा-आओ एक सोरठा याद करो। उन्होंने सिखाया "हंसिये ना हुंसियार, हंसिया हमकाई हुवे । हंसिया दोष हजार, गुण जावं गहलो गिणे ॥" एक बार उन्होंने यह श्लोक कंठस्थ कराया ३६४ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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