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________________ आचार्यश्री की ओज भरी वाणी व उसमें यदा कदा फूटने वाली संगीत लहरी से आम जनता एवं बुद्धिजीवी समान रूप से भाव विभोर हो उठते हैं, तो युवाचार्यश्री द्वारा धर्म के गूढ़ तत्त्वों को थोड़े ग्राह्य शब्दों में सुलझाने की विशेष शैली से बड़े से बड़े विज्ञजन मंत्र-मुग्ध हो उठते हैं। एक में आम जनता के हृदय को झकझोरने की अजेय शक्ति है, तो दूसरे में मस्तिष्क को सीधे छूने की प्रज्ञाशक्ति है और ये दोनों शक्तियाँ व्यक्ति को आत्मलक्षी बनाने में अद्भुत प्रेरणा का कार्य करती हैं। एक ने अपनी अपार करुणा से जन-जन का स्नेह प्राप्त किया है, तो दूसरे ने हित-चिंतन की सतत साधना में जन-जन का सम्मान पाया है, ऐसी स्थिति में दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है । दोनों कदम एक साथ नहीं चल सकते । एक पदचाप पर ही दूसरा पदचाप नहीं पड़ता, फिर भी दोनों चरण अलग-अलग रह कर एवं चलकर भी एक साथ ही रहते हैं व उनसे प्रगति की ओर गति प्राप्त होती हैं । युवाचार्यश्री के मनोनयन के अवसर पर आचाश्री ने सारे संघ को आश्वस्त किया है कि महाप्रज्ञ जी को दायित्व सौंपकर भी वे उनकी साधना की गतिशीलता में कोई व्यवधान नहीं पड़ने देंगे व अपना दायित्व उसी तरह निभाते रहेंगे। यह आश्वासन सौभाग्य-सूचक है व सारे धर्मसंघ की कामना है कि आचार्यश्री एवं युवाचार्यश्री दोनों पूर्ण आरोग्य एवं सुदीर्घ जीवन प्राप्त करें व संघ को अपना सबल नेतृत्व देते रहें ताकि विश्व की अध्यात्म शक्तियों को बल मिल सके। इस बात में किंचित् संशय नहीं किया जा सकता, कि समय आने पर युवाचार्यश्री अपने में आचार्यश्री की सारी शक्तियों को समाहित करने की क्षमता रखते हैं। इसी आशा और विश्वास के साथ मैं आचार्यश्री एवं युवाचार्यश्री दोनों महापुरुषों का इतिहास के इस अभिनव प्रसंग पर श्रद्धा पूर्वक हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। ३६२ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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